सुख दुःख
दुख और सुख हर व्यक्ति के जीवन का एक अटूट सा हिस्सा हैं।
खुशियां कम पड़ती जीवन में ,बड़े बड़े अरमान भी जीवन का हिस्सा हैं।।
जिसे भी देखो जीवन में खुश कम हैं और परेशान बहुत है।
जो घर दिखता था रेत का घर, दूर से देखो तो उसकी शान बहुत है।।
कहने को तो सच का नहीं मुकाबला,आज झूट की भी पहचान बहुत है।
ढूंढे से भी ना मिले आदमी शहर में, यूं तो कहने को इंसान बहुत हैं।।
मकानों के बीच में ढूंढ लो छोटे और बड़े मकान तो आज बहुत हैं।
घर तो नहीं मिलता है एक भी लेकिन मिलने को यहां महल बहुत हैं।।
सदियों से जो देश जाना जाता है,क्योंकि यहां संस्कृति और सनातन है।
आज हरेक मकान में देश के संस्कार ढूंढे नहीं मिलता फिर भी सबमें ज्ञान बहुत है।।
हर मकान में आदमी कम हैं फिर भी कमरे गाड़ी और सामान बहुत है।
दुख सुख बांटने वाले रिश्ते नहीं मिल रहे जबकि मेरे पास तो धन भी बहुत है।।
कहे विजय बिजनौरी अपने रिश्तों में आज भी जान बहुत है।
जिसने संभाल रक्खे है रिश्ते उसे दुख नहीं छूता और सुख का एहसास बहुत है।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।