सुकून की चाहत
दुनिया की रंगीनियां उदास मन को
कहाँ लुभाती है।
यंत्रवत मुस्कान,यंत्रवत बातें ,यंत्रवत
खिलखिलाहटें
दिल की वीरानगी हर शै पर भारी
पड़ जाती है।
अमावस सी कालिमा मन के भीतर,
बाहर से सूरज की तेज रोशनी,
कौन समझें किसे समझाएं
ये भरम दिल को बड़ा उलझाती हैं।
बेसुकून मन की यही ख़्वाहिश,
सुकून मिल जाये पल दो पल की,
पर ये चाहत कहाँ हर किसी की बोलो
कभी पूरी हो पाती है।
इम्तिहान जिंदगी के बड़े कठिन,
इन इम्तिहानों से गुजरकर भी जिंदगी
नही कभी एक सच्ची खुशी पाती है।
पाने खोने की कवायदें
जिसमें ये जिंदगी उलझ कर रह जाती है।