सीता – परित्याग
हृदय – चीर
दिखता सीरत
तो फिर क्यों जलना
भींगते नयन
जोड़ते कर( हाथ )
देती दान ,नजर
कहती क्यों ?
मन, कर्म , वचन
धिक्कारती क्यों
सत्य वचन
विवशता देंख
झरते आँखे
मिलता न्याय
निष्कपट,सरल को
तो (प्रमाण ) साक्ष्य न माँगते ।
अधिकार न्यायलय
पूछती रहेगी
जन्म -जन्म
सीते , कर्तव्य , कर्म
क्या मिला न्याय
नगर (समान्य जनता ), न्याय का भी,
गला घोंट,जुड़ती आहें
दिल,वर ( माँगना )
हे पुरूषोत्तम
आप राजा राम रहे
बहती रहें आपकी
मर्यादा की गंगा
देती रहेगी सीता
अनुठी समर्पण ।
नारी हृदय सार्व
देती अपना सर्वस्व । _ डॉ. सीमा कुमारी, बिहार (भागलपुर )