सीता- अनुसूया मिलन
सिय सुकुमारी
जनक दुलारी
चित्रकूट वन- गमन पधारी…
चरण पादुका हीन
हार,न कर्ण फूल, कलाई आभूषण विहीन
फिर भी न दिखती दीन…
सिय को देख हुई बलिहारी
कंचन बरन, कजरारे मृग नयन
लजाती आभूषणों को कांति तुम्हारी…
कर कमल तुम्हारे
कोमल प्यारे
सेवा, सदगुण इन्हें पखारें…
शर्माये हथफूल, पछेली
कंगन भी पानी भर लाए
शील, सुकाम हल करें पहेली…
ऋषि पत्नी विचलित हो हारी
देखीं सिय जब वल्कल धारी
नारी सज्जित रूप सुखारी…
पति संग वन- बाग निहारो
दिव्य वस्त्र, आभूषण धारो
आदि सती हो नाम तिहारो
आदि सती हो नाम तिहारो…