सिसक रही हैं बेटियां,
हैवानों के हाथ !!
सिसक रही हैं बेटियां,
ले परदे की ओट !
गलती करे समाज है,
मढ़ते उस पर खोट !!
खेले कैसे तितलियाँ,
अब बगिया के साथ !
फ़ैल रहें दिन रात है,
हैवानों के हाथ !!
नहीं सुरक्षित आबरू,
क्या दिन, क्या रात !
काँप रहें हम देखकर,
कैसे ये हालात !!
महक उठे कैसे भला,
बेला आधी रात !
मसल रहे हैवान जो,
पल-पल उसका गात !!
मोमबत्तियां छोड़कर,
थामों अब तलवार !
दिखे जहाँ हैवानियत,
सिर दो वहीं उतार !!
✍ सत्यवान सौरभ