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27 Mar 2024 · 1 min read

सिसकियाँ

सुनाई देती है अक्सर
दोपहर में
नदी की सिसकियाँ,
सूख चुकी है वह
गहराई तक
कहीं नहीं है उसमें
जरा सी भी आर्द्रता,
वह बहुत तपती है
दहकती है,
उसमें रेत तक भी
नहीं दिखती है।

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति

Language: Hindi
3 Likes · 3 Comments · 114 Views
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