सियासी राग
सियासी राग गाया जा रहा है।
हमें उल्लू बनाया जा रहा है।।
गडे़ मुर्दे उखाडे़ जा रहे हैं।
मगर सच को दबाया जा रहा है।।
गरीबी को मिटा पाये नहीं तो।
गरीबों को मिटाया जा रहा है।।
जिन्होने देश पर हमले किये हैं।
चिकन उनको खिलाया जा रहा है।।
छिछौरे याद हैं सबको यहाँ पर।
शहीदों को भुलाया जा रहा है।।
अँधेरों की तरफदारी करें सब।
यहां “दीप”क बुझाया जा रहा है।।
प्रदीप कुमार “प्रदीप”