सिंहासन
सिंहासन’
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आज लिखें इतिहास नया हम
सत्ता के सिंहासन का,
अँधियारों से लड़ने वाले
सरकारी निर्वाचन का।
भ्रष्टाचार हुकूमत करता
मेहनतकश इंसानों पर,
सुप्त व्यवस्था गूँगी-बहरी
चुने इमारत लाशों पर।।
निर्धनता में दबी हुई हैं
बेबस चींख गरीबों की,
बुद्धिजीवियों को दिखती है
केवल पीर अमीरों की।
मासूमों की लाचारी को
लिख दें अब अंगारों से,
वो परिवर्तन दिखला देंगे
धधक उठे जो नारों से।
घर के जयचंदों को मिलकर
ईंटों में चुनवाएँगे,
अपराधी को बर्बरता से
नैतिकता सिखलाएँगे।
कलमकार का फ़र्ज़ निभाकर
अंतस अलख जगाएँगे,
गद्दारों के नाम चयन कर
शिलालेख लिखवाएँगे।
स्वरचित/मौलिक
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)
मैं डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना” यह प्रमाणित करती हूँ कि” कारगिल विजय पताका” कविता मेरा स्वरचित मौलिक सृजन है। इसके लिए मैं हर तरह से प्रतिबद्ध हूँ।