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23 May 2024 · 1 min read

निर्मल भक्ति

निर्मल भक्ति

मानव जीवन एक फुलवारी ,
जिसके हैं माली गिरिधारी ।
प्रेम-सिंचन से फैले हरियाली,
भक्ति से महके डाली-डाली।

माया की प्रकृति है काली,
जीव -बुद्धि भ्रमित कर डाली ।
पर प्रभु-प्रेम की बात निराली,
अहं त्यागने पर राह निकाली ।

जब भक्ति से जुड़ता संसारी,
तब पाप कर्म लगते हैं भारी।
उसको दिखते हैं प्रभु खाली,
राह जोहती आत्मा मतवाली ।

मिलन की आस को होकर प्यासी,
अधीर हृदय पर छायी उदासी।
गृहस्थ हो या फिर सन्यासी,
निर्मल भक्ति से मिलते बाँके बिहारी ।
– डॉ० उपासना पाण्डेय

Language: Hindi
1 Like · 33 Views
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