सावन बरसे…
अँखियाँ बरसें
सावन बरसे
फिर भी मनवा
प्यासा तरसे
गुजर न होती
इक पल जिस बिन
उसको देखे
बीते अरसे
याद सताए
रहा न जाए
बिंध गया मन
मनसिज शर से
कह दूँ कैसे
मन की अपने
काँपूं थर- थर
जग के डर से
जाने कैसी
थी पुरवाई
खिसक गया सुख
मेरे कर से
चाहत मन की
हुई न पूरी
कड़ी घड़ी में
निकले घर से
नेह बरसता
आँगन जिसके
लौटे प्यासे
उसके दर से
-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)