सारा जीवन व्यर्थ हो गया,अभी आर्थिक मंदी में।
मित्रों समर्पित है कोरोना गीत।
सारा जीवन व्यर्थ हो गया, अभी आर्थिक मंदी में।
भूख प्यास हो गयी पराई, इसी आर्थिक बंदी में ।
धूप छांव का होश नहीं अब, कोरोना से लड़ना है।
जीवन धर्म यही कहता है,कोरोना से बचना है।
बाल युवा मातायें वृद्धा, संकट में इस तंगी में।
भूख प्यास हो गई परायी, इसी आर्थिक बंदी में।
राहों पर अब निकल पड़े हैं, उन्हें शहर में जाना है।
चलते जाना है मीलों तक, गाँव पुनः फिर आना है।
धर्म-कर्म सब छूट गये हैं, ऐसी नाका बंदी में ।
भूख प्यास हो गई परायी, इसी आर्थिक बंदी में।
सारा जीवन व्यर्थ हो गया, अभी आर्थिक मंदी मे।
भूख प्यास हो गई परायी, इसी आर्थिक बंदी में।
–डॉ० प्रवीण कुमार श्रीवास्तव “प्रेम”
सीतापुर,उत्तर प्रदेश