“साँसों के मांझी”
“साँसों के मांझी”
साँसों के मांझी का क्या ठिकाना
शाम दोपहर या छूटे भोर,
कौन नहीं जो जंजीरों में जकड़ा
जस पतंग बंधा किसी डोर।
“साँसों के मांझी”
साँसों के मांझी का क्या ठिकाना
शाम दोपहर या छूटे भोर,
कौन नहीं जो जंजीरों में जकड़ा
जस पतंग बंधा किसी डोर।