सहारा कुदरत का (पर्यावरण दिवस पर विशेष)
दिनांक 5/6/19
कविता लेखन
कुदरत
कुदरत के भी
अपने ऊसूल है
दोस्तों
तुम उसे जीने दोगे
तब वह तुम्हें
मरने नही देगा
सूखती है धरा
सूख रही है धारा
इन्सान बन
रहा है सयाना
सूखी माटी पर
इबारत लिख
रहा है
बड़े कठोर
निर्णय हैं
जिन्दगी के
परिन्दें भी
भटकने लगे है
जल के बिना
इन्सान तड़प
रहा है
बंजर में
महफिले जमा
रहा है
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल