“सवाल”
हर उठती उंगलियाँ कुछ सवाल करती हैं,
हर मटकती आँखें कुछ कमाल करती हैं।
यूँ तो सैकड़ों किताबें पढ़ी आपने,
रोटियाँ मिली कितनी, पैदा मलाल करती हैं।
नजरें चुरानी पड़ी आईने से रह-रह के,
फिर तो ये जमीर भी हलाल करती हैं।
नदी के दोनों किनारे मिले भी तो कैसे,
कभी ऐसी बातें बेचैन-ए-खयाल करती हैं।
सवाल ये नहीं कि आप कितने खुश हैं,
कितने खुश हैं आपसे, निगाहें सवाल करती हैं।
जवाबों को मत परखिए ‘किशन’ सवालों से,
जवाबों की सूरत भी पेश-ए-मिसाल करती हैं।
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
भारत भूषण अवार्ड प्राप्त 2022-23 के लिए।