सर्दियों का मौसम – खुशगवार नहीं है
ये सर्दी – ये धुंध भी ना मेरी दुश्मन है
औरों की तरह- ये खुशगवार नहीं है
किसी ना किसी तरह , तेरी याद ताज़ा रखती है
पहाड़ी पगडंडियों पर चीड़ के पत्तों से टपकी
ओस की ये बूँदें चीड़ की मादक ख़ुश्बू
मेरे चेहरे पर तेरे बालों से टपकती बूंदों को
ज़िंदा कर देती हैं
वो मंद मंद बयार , वो सरसराती पत्तियाँ
और ढलती शाम की गहराती स्याही,
ठंढ से बढ़ती धुन्ध मे छिपी धुँधली सी परछाईं
क्यूँ लगता है के दबे पाँव आज भी
मेरे पीछे आ रही हो
जानता हूँ – सच नहीं है पर फिर भी
पलट के देख लूँ , जी तो बहुत करता है
कुछ देर – थम तो जाता हूँ –
तेरे पास पास होने का एहसास
महसूस करता हूँ –
पर इस भरम के टूटने के डर से
बस पलटता नहीं हूँ