*सरहद के पार कर दो*
हटा दो दुश्मनों को दूर उन्है सरहद के पार कर दो ।
ये दिखें ना काफ़िर इधर मामला आर पार कर दो ।।
बक़्त आ गया है पिला दो जूनून को अकूत ताक़तें
मशालें धाँय करने के पहले उन्हें खबर दार कर दो।।
जिंदगी रहते आँखे चार देखें लाजिम नहीं रहा अब्
मूँड़ दो चाँद सिर पे बाल ना बचें टांगें वेकार कर दो।।
जिन पांवों पे चलें दिखें लौटाएं उन्हीं पे मजबूर करके
हाथ में आये जितनी खोपरें हिस्से उनके चार कर दो।।
चटाकर उनसे तलवे पाँव के गन्दे नहीं करवाना हमें
टूट पड़ना है बंधकर हमें फिर सीने पे सौ वार कर दो।।
जुल्म सहने की सीमा ‘साहब’ अब खत्म हो चुकी है
उठा है तूफ़ान चलके जीना सयारों का दुश्बार कर दो।।