“सरलता”
माना की बह जाता है
कहीं भी कैसे भी
ढल जाता है किसी भी रूप में
मिल जाता है किसी भी रंग में
कभी मीठा तो कभी तीखा
घुल जाता है किसी भी स्वाद से
मगर फिर भी कभी
किसी धुलकते हुए
“अश्रु बूंद” से पूछना
“तरल” होना इतना “सरल” भी नहीं…
स्वरचित
इंदु रिंकी वर्मा