समुंदर बेच देता है
वो दौलत बाप की बोली लगाकर बेच देता है
कभी सोना कभी हीरा कभी घर बेच देता है
कहीं प्यासा न मर जाये तड़पकर एक दिन यारों
वो कतरा भी नहीं रखता समुंदर बेच देता है
लड़ाकर एक-दूजे को धरम के नाम पर सुन लो
हमारे ख़्वाब सारे एक रहबर बेच देता है
कमाते हैं सभी लेकिन उसे लत है लुटाने की
भले कुनबा बिखर जाये वो दफ्तर बेच देता है
सजग रहते नहीं ‘आकाश’ घर के लोग हर पल तो
चुराकर वस्तुओं को एक नौकर बेच देता है
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 14/05/2022