समानता
नारी हूँ तो नारी की पहचान चाहिए
उड़ सकूँ बेफिक्र वो आसमान चाहिए
बेटी बेटों में फर्क नहीं फिर
जन्म पे उनके क्यों शर्माते हो
बेटों के जन्म पे गर्व हुआ
बेटी को गर्भ में मरवाते हो
फक्र करे बेटी पर वो जहान चाहिए
सत्ता में है भागीदारी फिर
क्यों रबड़ की मोहर बनी
राज तुम्हीं तो करते हो
बस नाम की है हिस्सेदारी
सक्रियता जहाँ हो वो देश महान चाहिए
बेटों को तो स्वच्छंद किया
बेटी की लक्ष्मण रेखा है
शारीरिक संरचना ने क्या
हमको आगे बढ़ने से रोका है
नारों में नहीं, विचारों में हक़ समान चाहिए
देख बदन नारी का क्यों
इतने विचलित हो जाते हो
नोचते हो ज़िस्मों को और
रूह को घायल कर जाते हो
महिला दिवस नहीं हर दिन का सम्मान चाहिए