समाज और व्यक्तित्व निर्माण में सम्प्रेषण की भूमिका
संप्रेषण:-संप्रेषण की परिभाषा विभिन्न व्याकरणविंदों तथा विद्वानों ने दी है और सबका सार यही है कि सम्प्रेषण वह प्रक्रिया हैं जिसके माध्यम से हम अपनी भावना, विचार, सिद्धांत, ज्ञान इत्यादि को दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाते हैं, तथा अपनी विचारों पर उसकी प्रतिक्रिया को जानते हैं। इस प्रक्रिया के कुछ प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं:-
(क) श्रोत
(ख)संदेश
(ग)माध्यम
(घ)श्रोता
(ङ)प्रतिक्रिया
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं।प्रत्येक समाज के निर्माण में संप्रेषण की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। हम संप्रेषण के द्वारा स्वयं और लोगों में सामंजस्य स्थापित कर पाते हैं।संप्रेषण मानव की प्रकृति ही नहीं, उसकी मूलभूत आवश्यकता हैं। यह किसी भी समाज के लिए अनिवार्य हैं । मानव- संबंधों की नींव इसी पर टिकी हुई हैं। संप्रेषण सामाजिक व्यवहार का आवश्यक उपकरण हैं। मानव समाज की प्रभावशीलता लोगों के द्वारा किए गए संप्रेषण पर ही निर्भर करता हैं । यह प्रत्येक मानवीय संसाधनों की क्षमता में सुधार कर हमारे पूरे समाज को उन्नत बनाता है। इसके माध्यम से पर्याप्त सूचनाओं, तथ्यों एवं आँकड़ों का ज्ञान प्राप्त कर विभिन्न श्रोतों के माध्यम से दूसरों तक पहुँचाकर उसकी प्रतिक्रिया को जानते हैं तथा सामंजस्य स्थापित करके किसी भी कार्य को तीव्रता से गतिमान करते हैं। यदि कोई संगठन अत्यधिक विस्तृत हो तब तो संप्रेषण अनिवार्य हो जाता है और इस अवस्था में यह महत्वपूर्ण होता है कि नियंत्रण के स्तर पर कार्य की प्रगति से संबंधित पर्याप्त सूचनाएँ निश्चित समय पर मिलते रहे । संप्रेषण को प्रशासन का प्रथम सिद्धांत माना जाता है। समाज में आंतरिक सहयोग एवं समन्वय का समायोजन की प्राप्ति के लिए संप्रेषण व्यवस्था का होना नितांत आवश्यक है।
संप्रेषण न हो तो सामाजिक विघटन की प्रक्रिया उत्पन्न हो सकती है तथा समाज में अनेक प्रकार की मानसिक विकृतियाँ घर-कर सकती है। संप्रेषण नहीं होने पर हम किसी भी समाज को सुचारू रूप से नही चला सकते और न ही हम किसी सशक्त कार्य को अंजाम दे सकते हैं। संप्रेषण न होने पर समाज टुकड़ों-टुकड़ों में विभक्त हो सकता है तथा समाज का अस्तित्व भी मिट सकता है। बिना संप्रेषण के समूह या समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती । संप्रेषण के उचित व्यवस्था के बिना कोई समाज कार्य भी नहीं कर सकता ।
संप्रेषण के द्वारा ही हमारा व्यक्तित्व निर्माण भी होता हैं । हम अपने संप्रेषण के माध्यम से ही अपने आप को प्रस्तावित कर सकते हैं तथा इसके माध्यम से ही अपने गुणों, अनुभवों और प्रतिभाओं से दूसरे को प्रभावित कर उन्नत और स्पष्ट व्यक्तित्व तथा इसकी छवि बना सकते हैं।
अगर संप्रेषण न हो तो न तो हमारी व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा और न ही हम अपने आप को व्यक्त कर पाएँगे । तब हमें यह अपना मानव जीवन बोझिल-सा प्रतीत होने लगेगा और हम हम सभी विवश और विचारहीन (शब्दहीन) जीवन व्यतीत करने लगेंगे। इस प्रकार,सम्प्रेषण के अभाव में व्यक्तित्व निर्माण असंभव है।
मानव जन्म लेते ही संप्रेषण शुरू कर देता है, चाहे वह संप्रेषण गैर-भाषिक ही क्यों न हो। माँ की गोद बच्चों का पहला पाठशाला होता है।फिर, धीरे-धीरे शारीरिक विकास के साथ-साथ व्यक्तित्व निर्माण भी संप्रेषण के विविध रूपों से होता है। व्यक्तित्व निर्माण में संप्रेषण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे व्यक्तित्व का बहुआयामी विकास होता है। समाज में लिंग, आयु, वर्ग इत्यादि संप्रेषण को पूर्णतया प्रभावित करता हैं। व्यक्ति अपने संप्रेषण के तरीकों से ही लोगों के द्वारा पसंद या नापसंद किए जाते हैं। सकारात्मक संप्रेषण सकारात्मक व्यक्तित्व का निर्माण करता है, जबकि विलोमतः नकारात्मक संप्रेषण नकारात्मक व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
अतः, हमारी निष्कर्ष अंतरिम रूप से यहीं निकलता है कि चाहे व्यक्तित्व निर्माण हो या समाज निर्माण दोनों में संप्रेषण की अति महत्वपूर्ण भूमिका है। बिना संप्रेषण के न तो हम उन्नत समाज की ही कल्पना कर सकते है और न ही स्पष्ट और अच्छे व्यक्तित्व की।
✍️✍️✍️खुश्बू खातून