समय
२२१२…२२१२…२२१२..२२१२
आधार छंद — हरिगीतिका
समांत – आ, पदांत – कर चल दिए
धुन श्री राम चंदर कृपालु…..
कैसा समय यह आ गया , खुद को उठा कर चल दिये
बिजली गिरी है कब किधर, गुनगुनाकर चल दिये।-१
दिल तोड़ते वे रोज हैं पर , मन में न रखते मलाल
पीड़ा छिपा कर दिल में’ ही हम सर झुका कर चल दिये।-२
माया में’ फँस कर के सभी ही, गिरते’ हैं देखो रात दिन
कुछ ही पलों की चाँदनी फिर मुँह छिपा कर चल दिये।-३
झूठे दिखावे में ही लगे, बातें करें हैं खोखली
सपने सजा कर खूब ही वे, हाथ हिला कर चल दिये।-४
बेबस से’ हैं सब लोग तडपते’, रोने का है रोग हुआ
ख़ाली बुने हैं बैठ सपने, ध्यान बँटा कर चल दिये।-५
हमको ‘लता’ है दुख बहुत, क्या हो रहा संसार को
कैसे कटे यह जिंदगी हम तिलमिला कर चल दिये।-६
सूक्षम लता महाजन