Shankar lal Dwivedi, Sohan Lal Dwivedi, kishan saroj and kaka hathrasi together in a Kavi sammelan at sasni.
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
*मंडलायुक्त आंजनेय कुमार सिंह जी से 'मुरादाबाद मंडलीय गजेटिय
कोई भी जंग अंग से नही बल्कि हौसले और उमंग से जीती जाती है।
मनमाने तरीके से रिचार्ज के दाम बढ़ा देते हैं
*जय सियाराम राम राम राम...*
यूं टूट कर बिखरी पड़ी थी तन्हाईयां मेरी,
आप अपनी नज़र फेर ले ,मुझे गम नहीं ना मलाल है !
मैं मासूम "परिंदा" हूँ..!!
यूँ तैश में जो फूल तोड़ के गया है दूर तू
करुंगा अब मैं वही, मुझको पसंद जो होगा
बेटी है हम हमें भी शान से जीने दो
आँसू बरसे उस तरफ, इधर शुष्क थे नेत्र।
जब से हमारी उनसे मुलाकात हो गई
you don’t need a certain number of friends, you just need a
क़ाबिल नहीं जो उनपे लुटाया न कीजिए