“सफलता”
तुम चले ही नहीं
तो मिलती कैसे,
बस रह-रह के
आहें भरती रही,
मैं तो तेरा
इन्तजार करती रही।
चलना भी सीखो
कदम दो कदम,
कभी दौड़ लिया करो
चन्द लम्हें,
कभी पीछे मुड़कर देखो
पल भर के लिए,
मगर तुम तो बस
खड़े रह गए,
करती भी क्या
बस तन्हाई में बसती रही,
मैं तो तेरा
इन्तजार करती रही।
(मेरी द्वितीय कृति- ‘माटी का दीया’ से…)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
वर्ल्ड ग्रेटेस्ट रिकॉर्ड होल्डर।