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22 Nov 2019 · 1 min read

सफर जिन्दगी का

करते
अपना पराया
जिन्दगी
यूँ ही गुजर
जाती है
आया
खाली हाथ है
खाली ही
चला जाता है

ऐ जिन्दगी
तू इतनी भी
हंसीं नहीँ है
कि
अपना पराया
करते तूझे
जिया जाये
वो तो
हम ही हैं
जो तूझे
ढोये जा
रहेँ हैं

करते नहीँ
माता पिता
अपना पराया
पालते है वो
भूखे कह कर
अपने मुँह
का कौर
खिला कर

आ जाता है
जब सब हाथ
संभल जाता है
जब पंछी
उड़ जाता है
अपनों को ले कर

अपने पराये का
खेल है निराला
नहीँ है कोई
अपना प्यारा
जब तलक है
स्वार्थ उनका
पराये को भी
बना लेते है
अपना

निभाओ
रिश्ता ऐसा
दूध में मिले
पानी जैसा
मत बोलो
वह पराया है
मत बोलो
यह अपना है
खाये और रहेँ
मिलबांट कर

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
447 Views
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