सपनों के उस बस्तर में
बहुत ही सस्ती है जिन्दगी
सपनों के उस बस्तर में
जो चलती नहीं
किसी सरकारी कागज से
वो टिकी रहती है
सिर्फ बन्दूक की नली पर,
पता नहीं कब खत्म हो जाए
धमाकेदार बारूद से
या बन्दूक की एकाध गोली पर।
क्रूर नहीं होता वो कारतूस भी
ना होता बेरहम
बन्दूक के घोड़े को दबाती
वो उंगलियाँ
जो सहमी होती है
कुछ मजबूर हालातों पर,
ढेरों आती-जाती हुई
कुछ खट्टी-मीठी यादों पर।
अगर मरने के वास्ते
एकान्त की तलाश हों तो
बेहतर है बस्तर का बीहड़ वन,
भीगो जाते हालात जहाँ के
इंसान के सारे बदन,
अफसोस मत करना तब
अगर बन्द कर दे काम अपना
तेरा ये जिगर, ये धड़कन।
(मेरी सप्तम काव्य-कृति : ‘सतरंगी बस्तर’ से..)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
अमेरिकन एक्सीलेंट राइटर अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।