“सपना देखने में”
हॉं, सपना देखने में
कोई बुराई नहीं
लेकिन बेवजह के
लफड़ों में नहीं पड़ना है,
टी.वी. पर जहर घोलती
बहसों से दूर रहना है।
अपने कामकाज खेती-बाड़ी
फुरसत के पलों में चौपाल
हर जगह का माहौल
अच्छा बनाए रखना है,
बे-फिजूल की बहसों में
बिल्कुल नहीं उलझना है।
मुहम्मद रफी और लता के
गाए हुए गीत सुनना
इस दौर में भी जरूरी है,
वजह यह कि वो धुन
इंसानियत से भरी-पूरी है।
तू हिन्दू बनेगा
न मुसलमान बनेगा,
इंसान की औलाद है
इंसान बनेगा…।
आज के दौर में लोगों को
सुकून से रहना सिखाना है,
साहिर लुधियानवी के
ये गीत भी गुनगुनाना है-
न मुँह छुपा के जियो
और न सर झुका के जियो,
गमों का दौर भी आए
तो मुस्कुरा के जियो…।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
बेस्ट पोएट ऑफ दी ईयर-2023
श्रेष्ठ लेखक के रूप में विश्व रिकॉर्ड में दर्ज।