सत्य की खोज
विकल है मन
अटका हुआ सा है कहीं
कुछ तो है
जो संभवतः अज्ञात है
अंतर्मन कहता है
कि-
जो सामने है
वो या तो अर्द्ध सत्य है
या सर्वथा मिथ्या है
तो फिर पूर्णतः सत्य क्या है
शास्त्र कहता है
कि
तुम पूर्ण सत्य तो ईश्वर को जानो
तो फिर ये देह क्या है
शास्त्र फिर कहता है
देह तो नश्वर है
अदेह अनश्वर है
तो फिर अदेह क्या है
शास्त्र फिर
अदेह की अजरता
और अमरता की परिभाषा गढ़ता है
लेकिन मेरा अन्वेषण
फिर भी जारी है
कि सत्य क्या है
अदेह या अदेह-निर्माता?
गुण एक हैं दोनों के
फिर भी अलग हैं दोनों
नहीं नहीं……
अभी सत्य उजागर नहीं है
क्योंकि पुरातन से
तलाश अभी जारी है
कि
सत्य ईश्वर है तो
हम अर्थात् मनुज
कौन हैं
सत्य तो नर भी है
क्योंकि ये आँखें
विश्वास तो उसी का करती हैं
जो दिखता है
पर जिन पर मोह का परदा
और माया की चादर लिपटी है
वो सत्य नहीं हो सकता
ये भी शास्त्र ही कहता है
तो अन्वेषण सतत है
कि सत्य क्या है
देह वा अदेह वा अदेह निर्माता…..??
प्रश्न अभी निरुत्तर है
पर खोज अभी
जारी है………
सोनू हंस