‘सती’
थी दक्ष की सुता सती,
त्रिलोकी को निहारती,
स्वीकारा शिव को पति,
उचारे शिवम-शिवम।
माने न पिता की बात,
समझाती उसे मात,
बीत जाए सारी रात,
रहते नैन नम-नम।
शिव ले बारात आये,
भूत-प्रेत साथ लाये,
बाघंबर धार आये,
डमरू बाजे डम-डम।
देख शमशान योगी,
कहे सब उसे जोगी,
बेटी न प्रसन्न होगी,
भेजें न संग हम-हम।
सती हंसे मन मन,
डरते थे जन-जन,
वार बैठी तन-मन,
हदय मची धम-धम।
मन चाहा वर पाया,
सती मन भर आया,
भोले की है ये तो माया,
है नहीं भरम-भरम।
यज्ञ का था अवसर,
न बुलाए शिव पर,
शिवा आई मात घर,
हो खड़ी सहम-सहम।
देखा स्वामी अपमान,
जाग उठा स्वाभिमान,
कर दिए प्राण दान,
यज्ञ में भसम-भसम।
स्वरचित-
गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार उत्तराखंड