सच में शक्ति अकूत
सच में शक्ति अकूत
————————
कैसे दें दुनिया को बोलो,
पक्के ठोस सबूत,
सच में शक्ति अकूत!
चौखट पर जाने वाले को,
धमकाता कानून?
होकर बरी घूमते दोषी,
होता सच का खून।
लथपथ बेबस बना हुआ है
जग में सत्य अछूत।
अनुल्लंघ्य लगते हैं सच को,
सुन्दर से मेहराब।
गली-गली में भटक देखता,
निज प्रसार के ख्वाब।
नहीं टूटते कभी इरादे,
होते जो मजबूत।
सहन नहीं होती है सबसे
सच की उजली धूप।
दिख जाता है असली चेहरा,
जो यथार्थ विद्रूप।
सच को केवल समझ सका है,
गाँधी-सा अवधूत।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय