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2 May 2024 · 1 min read

श्रमिक

श्रमिक
———
१••••
हाँ
बना
श्रमिक
अनपढ़
आज व्यथित
छोड़ महानगर
जाता अपने गाँव।
२••••
ये
दुष्ट
आपदा
छीन रही
सुख आराम
नहीं है विश्राम
काम मिलता नहीं।
३••••
है
भूखी
संतान
निरुपाय
मिले भोजन
इन्हें भरपेट
सोचता है हृदय।
४••••
हैं
दूर
सपने
शिक्षा वस्त्र
प्राथमिकता
सबका भोजन
तत्पश्चात् हो अन्य।
५••••
है
बनी
वैश्विक
महामारी
बेरोजगार
हुए निराधार
छूटते नगर गाँव।
६••••
ये
बने
महल
दुमहले
अथक श्रम
बदला मौसम
नहीं रहा आकाश।
७••••
है
स्वर्ण
सज्जित
हँसे धरा
श्रम सीकर
करते पोषित
शस्य श्यामला भूमि।
~~~~~~~~~~~~~
डा० भारती वर्मा बौड़ाई

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