सखि री ऋतु बसंत की आई
सखी री ऋतु बसंत की आई…सखी री ऋतु बसंत की आई
मन को रही लुभाई… सखी री ऋतु बसंत की आई
वाग बगीचे पुष्प लताऐं, फूल रही फुलबाई
मंद सुगंधित बासंती ने, मादकता फैलाई
पोर पोर में रंग भरे हैं, फसल रही लहराई
उल्लास उमंग उत्साह जगाती,सखि प्रेम ऋतु आईं
सखि री ऋतु मिलन की आई,सखी री ऋतु बसंत की आई
सजी धजी धरती मनमोहक,छटा कही न जाई
विरन विरन के फूलों पर,मन भंवरा रहा लुभाई
वन पर्वत तड़ाग और नदियां,देख देख ललचाई
आए हैं ऋतुराज, प्रकृति पोर पोर हरषाई
छाई है चहुंओर सखि, ऋतु बसंती आई
सजा हुआ मधुमास सखि,छटा बरनि न जाई
मनवा गाए गीत प्रेम के,तन नृत्य को रहा लुभाई
रोम रोम रोमांचित करती, ऋतु बसंत की आई
सखि री तन मन को रही सुहाई,सखि री ऋतु बसंत की आई
सुरेश कुमार चतुर्वेदी