संवेदना
मेरी संवेदनाओं का ग्लेशियर
धीरे-धीरे पिघलने लगता है
जब बेवज़ह की डाह की ताप
में जलने लगता है कोई मन
मेरे वजूद से।
चाहती हूँ कि मेरी संवेदनाएं
चिरस्थायी रहें
हर दर्द ,तकलीफ़ में हर मुश्किल हालात में
ताकि समझ सकूँ
दुखी ह्र्दय की बात
और उनके दर्द को महसूस कर
उनके संग सरल बनी रहूँ।
मगर ,मेरी संवेदनाओं का ग्लेशियर
नही सह पाता है
जलन ,कुंठा और वैमनस्य की
दहकती ज्वाला को
क्योंकि चाहे अनचाहे वह आहत करते हैं।
फिर क्रोध की ज्वाला धधकती
मेरे ह्र्दय में
और नही शीतल ,स्निग्ध कर पाती
मेरी भावनाओं और विचारों को।
फिर पिघल जाती हैं धीरे-धीरे
संवेदनाओं का ग्लेशियर।
और बहा ले जाती हैं मन की
सरलता,निर्मलता और निश्छलता।