संवेदना का प्रवाह
संवेदना
शब्दों के जंजाल में,हर रूप-हर काल में ,समय के आगे नतमस्तक सम्वेदना।
हर धड़कन में उसकी गूँज,रक्त सी धाराप्रवाह, ह्रदय के कोनों में बसी सम्वेदना।
आँखों की भावना, ख़ुशी की कामना, सभी रंगों में फैली सम्वेदना।
दुखियों की मुस्कान, सुसामाजिक की थकान , खट्टी मिठास सी सम्वेदना।
प्रेम की गागर , दुःख का सागर, सबकी महाकाव्यों में व्याप्त सम्वेदना।
संघर्ष की राहों में, सफलता के चाहों में, जीवन के पनाहों पर साथ चली सम्वेदना।
अनजाने पथ पर, अपने “आप” के रथ पर , निर्वाण की खोज में उलझी सम्वेदना।
संगीत की सरगम से , कला की छायांकन के, अंतर में उपजी सम्वेदना।
जीवन की रचना द्वारा, सरंचना का बढ़ता पारा , हर क्षण सृजन होती सम्वेदना।
एकता के बल से, भ्रातृत्व के फल से ,संवरते कल से – बुनी हुई सम्वेदना।