“संकल्प”
“संकल्प”
भूल जाये चाहे दुनिया सारी
मैं माटी का कर्ज चुकाऊंगा,
जिससे बनी यह देह मेरी
उसी में मर- मिट जाऊंगा।
मेरी 50वीं काव्य-कृति : ‘स्पन्दन’ से
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
“संकल्प”
भूल जाये चाहे दुनिया सारी
मैं माटी का कर्ज चुकाऊंगा,
जिससे बनी यह देह मेरी
उसी में मर- मिट जाऊंगा।
मेरी 50वीं काव्य-कृति : ‘स्पन्दन’ से
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति