श्री अयोध्या धाम और चित्रकूट यात्रा
श्री अयोध्या धाम और चित्रकूट यात्रा
कहते हैं कि किसी धाम या तीर्थ में व्यक्ति परमात्मा के बुलावे पर ही जाता है। यह बात हमने स्वयं भी कई बार अनुभव की है। बहुत बार ऐसा हुआ कि किसी तीर्थ में जाने का कार्यक्रम बना किंतु किसी न किसी व्यवधान के कारण नहीं जा सके।
इसी वर्ष जब अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी तभी से अयोध्या जाने का बहुत मन था। पहले तो यही निश्चय किया था कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद दर्शन करने जायेंगे, लेकिन दूरदर्शन पर प्रतिदिन दर्शनार्थियों की बढ़ती भीड़ के समाचार देखकर यही निश्चय हुआ कि यह भीड़ जब सामान्य हो जायेगी तभी जायेंगे।
उसके बाद धीरे धीरे अयोध्या जाने की इच्छा सुप्त चेतना में चली गई।
विगत बृहस्पतिवार को अचानक हमारे एक सहजी भाई विनोद गुप्ता जी का फोन आया कि भाईसाहब कल अयोध्या चलना है।
पूछने पर पता चला कि सात सहजयोगी परिवारों ने अयोध्या व चित्रकूट के भ्रमण व दर्शन का कार्यक्रम बनाया है, उसमें हमारा भी नाम है। मना करने का तो प्रश्न ही नहीं था, लेकिन हमने यह जरूर कहा कि दो दिन में अयोध्या व चित्रकूट दोनों जगह जाना व्यावहारिक नहीं है, केवल अयोध्या चलना चाहिए। लेकिन जब सामूहिक कार्यक्रम तय हो जाता है तो उसमें परिवर्तन भी नहीं हो पाता है।
अतः: श्री राम का बुलावा मानकर हम भी चल दिए।
14 दिसंबर शनिवार रात्रि 9.30 बजे 22 सीटर बस द्वारा यात्रा प्रारंभ हुई। जब बस बरेली से आगे मीरनपुर कटरा से फर्रुखाबाद की ओर मुड़ी तो पता चला कि पहले चित्रकूट जा रहे हैं। खैर साहब जलालाबाद से कुछ पहले एक ढाबे पर चाय पी। रास्ता हमारा देखा भाला था, क्योंकि जब हम बिधुना में पोस्टेड थे तो इसी रास्ते से जाते थे। फर्रुखाबाद के बाद बस बिधुना के रास्ते पर छिबरामऊ व वहॉं से सौरिख पहुॅंची तथा सौरिख से लखनऊ एक्सप्रेस वे पर चढ़ गई। इटावा की ओर कुछ ही दूर चलने के बाद बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे पकड़ लिया। धीरे-धीरे पूरी रात सफर में एक्सप्रेस वे की सुंदरता देखते गुजरी और सुबह के 7.30 बजे हम चित्रकूट पहुॅंच गये।
चित्रकूट में एक होटल में बमुश्किल दो कमरे मिले, उन्हीं में फटाफट सभी शौचादि व स्नानादि से निवृत हुए व तदुपरांत हैवी ब्रेकफास्ट लेकर भ्रमण हेतु चल दिए।
चित्रकूट दर्शन:
चित्रकूट में रास्ते में ही आटो वाले ने बताया कि अब हम मध्य प्रदेश में हैं। उसने बताया कि चित्रकूट ऐसा नगर है जो आधा उत्तर प्रदेश के कर्वी जिले में आता है, और आधा मध्य प्रदेश के सतना जिले में आता है।
थोड़ा आगे चले तो कामदगिरि परिक्रमा मार्ग पड़ा, यहॉं वर्ष भर कामदगिरि की परिक्रमा होती है जो लगभग 5 किमी की है। कामदगिरि में ही श्री राम, बनवास काल में 11 वर्ष तक चित्रकूट में रहे थे।
सर्वप्रथम हम सती अनुसुइया आश्रम में गये। यह पहाड़ों के बीच मंदाकिनी के उद्गम स्थल पर अत्यंत शांति पूर्ण आश्रम है। यहॉं पर अत्यंत भव्य मंदिर बनाया गया है जहॉं वर्ष भर सैलानी आते रहते हैं। इसी मंदिर से कुछ ऊपर की ओर चलने पर ऋषि अत्रि व सती अनुसुइया की कुटिया है जहॉं उनकी प्रतिभा भी स्थापित है। इस स्थान पर अत्यंत शांति व्याप्त थी। हम सबने वहॉं बैठकर कुछ देर ध्यान किया और उस शांति को व वहॉं के चैतन्य को आत्मसात किया। उसी पहाड़ी के नीचे मंदाकिनी नदी है। आश्रम के नीचे से ही एक प्राकृतिक स्रोत नदी में मिल रहा है, ऐसे ही अन्य स्रोतों से मिलकर यह नदी आगे चलती है।
सती अनुसुइया के आश्रम से चलकर हम आगे गुप्त गोदावरी नामक स्थान पर गये। यह भी एक पहाड़ी पर स्थित है। कहा जाता है कि जब गोदावरी जी को पता चला कि माता सीता चित्रकूट में हैं तब उनके दर्शन हेतु एक धारा गुप्त रूप से पहाड़ के अंदर होते हुए, नासिक से चित्रकूट आयी थी, वही धारा आज गुप्त गोदावरी है।
यहॉं पहाड़ में एक गुफा में अत्यंत संकरे रास्ते से लगभग 15-20 फुट नीचे उतर कर बहुत बड़ी गुफा में पहुंचते हैं जो बहुत बड़ा सा हॉल है, एक जगह मंदिर है व एक कुंड है, जो गुप्त गोदावरी कुंड है। इस गुफा से बाहर निकल कर नीचे की ओर एक अन्य गुफा है, जो पानी से भरी रहती है। उस गुफा में घुटनों से कुछ नीचे तक पानी में चलकर हम अंदर गये। वहॉं गुफा बहुत संकरी थी तथा पानी भी वहॉं से आ रहा था।कुछ लोग गुफा में जाने का प्रयास कर रहे थे लेकिन अत्यंत संकरा मार्ग होने के कारण नहीं जा रहे थे। उक्त गुफा से बाहर आकर थोड़ी देर चाय पी। अपरान्ह 3.30 हो चुके थे। हमें एक अन्य स्थल हनुमान धारा का भी भ्रमण करना था किंतु वहॉं जाने व भ्रमण में 2 घंटे लगना लाजमी था, अतः निश्चय हुआ कि वापस लौटकर रामघाट का भ्रमण किया जाये। लगभग 4.00 बजे हम सब रामघाट पहुंचे और वहॉं के मुख्य आकर्षण तुलसी दास जी की प्रतिमा के दर्शन किये। इसी स्थान पर तुलसीदास जी ने प्रभु श्री राम के दर्शन किये थे। कहा जाता है कि तुलसीदास जी प्रभु श्री राम को मानवरूप में पहचान नहीं पाते थे। उन्होंने हनुमान जी से याचना की कि जब प्रभु राम आयें तो वह उन्हें मिलवा दे। जब प्रभु राम सामान्य मानव बनकर तुलसीदास जी के सम्मुख आये तो तुलसीदास जी उन्हें नहीं पहचान सके और आम यात्री की तरह उनका भी तिलक करने लगे। तब हनुमान जी ने वहीं बैठकर यह दोहा गाया:
चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर।
तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देत रघुवीर।।
दोहा सुनते ही तुलसीदास जी प्रभु श्री राम के चरणों में नतमस्तक हो गये। चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के तट पर रामघाट में उसी स्थान पर तुलसीदास जी की भव्य प्रतिमा स्थापित है।
हम प्रतिमा को प्रणाम करके निहार ही रहे थे कि देखा एक कपि तुलसीदास जी के चरणों पर हाथ रखे बैठा है। मैंने मन में सोचा कि वैसे ही बैठा होगा, कुछ खाने की चीज पड़ी होगी, उठाकर चल देगा, लेकिन उसने शायद मेरे मन के भाव पढ़ लिये और वह वैसे ही बैठे बैठे उनके चरणों को सहलाने लगा (जैसे चरण छूते वक्त करते हैं)
बहुत देर तक वह वैसे ही चरण छूता हुआ बैठा रहा। लोगों ने खाने की वस्तुएं दिखाईं लेकिन वह नहीं हिला।
संभवतः कपि रूप में हनुमान जी ही वहॉं चरण वंदना कर रहे थे। मैंने जेब से मोबाइल निकाल कर उसका चित्र खींचा, वह भी मुझे देखकर पुनः पैरों को सहलाने लगा। मैंने एक चित्र और खींचा और उसे कुछ देर तक निहारता रहा।
फिर हम मन ही मन नतमस्तक होकर चले आये।
वहीं मंदाकिनी नदी में बोटिंग भी हो रही थी। साथ की महिलाओं ने बोटिंग की इच्छा प्रकट की किंतु पांच बज चुके थे, अतः यह तय हुआ कि बोटिंग अयोध्या में करेंगे, और हम वापस आकर बस में सवार हो गये । लगभग 5.30 बजे अयोध्या हेतु चल दिए।
अयोध्या धाम यात्रा:
रात्रि लगभग 12.15 बजे हम अयोध्या धाम पहुंच गये। अयोध्या धाम तीर्थ क्षेत्र के निकट ही एक होम स्टे में हमारी बुकिंग थी। सामान बस से उतार कर कमरों में रखा। फटाफट कपड़े बदलने व सोने में लगभग 1.00 बज गया। सुबह 5.00 बजे ऑंख खुल गई, उठकर पानी गर्म करके पिया, फ्रैश होकर कुछ देर ध्यान किया।
बाहर अभी अंधेरा था। अतः: फिर बिस्तर में लेट गये। सुबह साढ़े सात बजे चाय आ गई। स्नानादि के पश्चात साढ़े आठ बजे तक हम तैयार होकर बाहर धूप में बैठ गये। साथियों के तैयार होने में अभी विलंब था। लगभग 9.30 पर निकट ही स्थित एक जलपान गृह में आलू परांठे का नाश्ता किया और चाय पी। पेट पूजा हो चुकी थी। अब भगवद् पूजा की बारी थी।
होम स्टे वाला बंदा ही तीन ऑटो ले आया। काफी हील हुज्जत के बाद सभी दर्शनीय स्थल घुमाने के ₹1000/- प्रति ऑटो तय हुए। यह भी तय हुआ कि तीनों में जो अगुआ था वह हमें सभी मंदिरों में गाइड बनकर अंदर घुमाएगा ।
ऑटो में बैठकर मुश्किल से आधा किलोमीटर ही चले थे कि मंदिर परिसर का क्षेत्र आ गया और ऑटो वहीं छोड़ने पड़े।
अयोध्या धाम दर्शन:
ऑटो वाले रामकुमार की अगुआई में हम मंदिर परिसर में चले। मंदिर परिसर में जाने के बाद ही हमें रामकुमार के साथ होने का लाभ पता चला। बाहर से ही दूर तक पाइप लगी लाइनों में से होते हुए हम एक भव्य परिसर में पहुंचे। वहॉं एक ओर जूते जमा करने के लिये निशुल्क काउंटर थे। बहुत दूर तक वहॉं जूते जमा करने के काउंटर्स थे। सबसे अंत में एक काउंटर पर हमें जूते जमा करने की टोकरियां दी गई। एक टोकरी में अधिकतम दो जोड़ी जूते रखे जा सकते थे। इस प्रकार सात टोकरियों में जूते जमा करके हम पुनः आगे बढ़े।
फिर रामकुमार के निर्देशानुसार हमने सबके मोबाइल एक साथ गिनकर एक बैग में रख लिये। साथ ही सभी के बैग, पर्स आदि एकत्र करके एक ओर बने काउंटर्स में खाली काउंटर ढूंढकर वहॉं सब सामान जमा करवाया। इसी प्रक्रिया में एक घंटा लगा। वहॉं से चलकर फिर बाहर मुख्य द्वार की ओर स्टील रेलिंग के मध्य पंक्ति बद्ध होकर चलते रहे। फिर मुख्य द्वार से अंदर मंदिर प्रांगण में पहुंचें। वहॉं पहले सबकी स्कैनिंग हुई। अंदर आकर सभी एक साथ पंक्तिबद्ध होकर आगे चले। धीरे धीरे सीढ़ियों पर पहुंचे। मन रामलला के दर्शन को अधीर हो रहा था।
सीढ़ियों पर ऊपर चढ़ने के बाद वह प्रांगण आ गया जहॉं प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री जी ने उपस्थित जन समुदाय को संबोधित किया था। प्रांगण के बाद फिर सीढ़ियां मिलीं। हम सीढ़ियां चढ़ते जा रहे थे किंतु गर्भ गृह की झलक अभी तक नहीं दिखी थी। थोड़ी देर में हम मंदिर के प्रवेश द्वार में पहुंच गये। अंदर सीढ़ियां चढ़ने के पश्चात जैसे ही ऊपर पहुंचे, गर्भ गृह और उसमें प्रतिष्ठित राम लला के दर्शन होने लगे। मन आल्हादित हो गया, ह्रदय भर आया, ऑंखों में प्रेमाश्रु आ गये। कंठ बार बार जय श्री राम का उद्घोष करने लगा। हम मध्य वाली पंक्ति में आगे बढ़ते जा रहे थे और रामलला को निहारते जा रहे थे, तभी हमारे गाइड रामकुमार ने हमें मध्य से दांयी ओर की पंक्ति में भेज दिया। वहॉं से हमें रामलला के दर्शन बंद हो गये। लेकिन उस पंक्ति में हम सबसे आगे थे। उस पंक्ति से आगे बढ़ते हुए हम शीघ्र ही गर्भ गृह के प्लेटफार्म के सामने पहुंच गये, और अब हमारे और रामलला के बीच में कोई नहीं था। जी भरकर दर्शन करते रहे, बार-बार प्रणाम करते रहे, प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर लिखे अपने गीत की पंक्तियां गा गाकर रामलला को सुनाते रहे। कुछ चमत्कार ऐसा हुआ कि हमें वहॉं से किसी ने आगे नहीं बढ़ाया। हम स्वयं ही थोड़ा थोड़ा खिसक कर आगे बढ़ते रहे और जी भरकर रामलला को निहारते रहे। वहॉं से आगे बढ़कर मंदिर के दूसरी ओर से बाहर आ गये। ह्रदय अभिभूत था। श्री राम की अनन्य कृपा हम पर रही। सामान्य दर्शनार्थियों में से हमें वी वी आई पी दर्शन श्री राम ने दिये। पंक्तियों को आगे बढ़ाने वाले सुरक्षा कर्मियों को भी संभवतः उन्होंने भ्रमित कर दिया था, क्योंकि वह बीच की पंक्ति वाले श्रद्धालुओं को (जो हमारे पीछे वाली रेलिंग में थे) उनको तो आगे बढ़ाते जा रहे थे, लेकिन हमारी ओर उनका ध्यान नहीं गया।
बाहर निकल कर फिर पंक्तियों में आगे बढ़े और मंदिर की ओर से निःशुल्क प्रसाद की पुड़िया प्राप्त की। मंदिर की ओर से अत्यंत स्वादिष्ट रामदाना (इलायची दाना) का प्रसाद वितरित किया जाता है।
बाहर आकर सामान लिया, जूते आदि पहने, मंदिर के बाहर साथ की महिलाएं प्रसाद व स्मृति चिन्ह के रूप में रामलला व मंदिर से संबंधित चीजें खरीदने लगीं।
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र से बाहर आकर हम दशरथ महल व कनक भवन गये किंतु दोनों मंदिरों के पट बंद हो चुके थे। बाहर से ही दर्शन किये। कुछ देर कनक भवन की सीढ़ियों पर बैठे। दशरथ महल तो नाम के अनुसार ही राजा दशरथ व तीन रानियों और चारों राजकुमारों का महल था। कनक भवन के बारे में कहा जाता है कि यह महल राजा दशरथ ने सीता जी को मुंह दिखाई में दिया था। कनक भवन से लौटकर हम हनुमान गढ़ी में दर्शन हेतु गये। मंदिर में प्रवेश द्वार से ही सीढ़ियां हैं। भीड़ बहुत थी। धीरे-धीरे सीढ़ियां चढ़ते रहे। आधी सीढ़ियां ही चढ़े थे कि सांस फूलने लगी। वहीं दायीं ओर एक बेंच थी, थोड़ी देर वहॉं बैठे। सांस सामान्य होने के बाद फिर चढ़े और इस बार मंदिर के प्रांगण में पहुंच गये। थोड़ी देर बाद ही हम श्री हनुमान जी के विग्रह के सम्मुख थे। नतमस्तक होकर प्रणाम किया, साथ में लाई माला पुजारी जी को दी, मन ही मन हनुमान चालीसा का पाठ चल रहा था, आगे बढ़कर परिक्रमा की फिर उन्हीं सीढ़ियों से नीचे आ गये।
हनुमान गढ़ी से फिर ऑटो में बैठकर राम की पैड़ी पहुंचे। यहॉं बड़े बड़े पाइप्स के माध्यम से लिफ्ट करके सरयू का जल ऊपर एकत्रित किया जाता है और नहर में छोड़ा जाता है। नहर के दोनों ओर घाट हैं। घाट के दूसरे सिरे पर लता मंगेशकर चौक स्थित है। यह वही घाट है जहॉं प्रति वर्ष दीपोत्सव मनाया जाता है। राम की पैड़ी के पीछे की ओर सरयू बहती है, वहॉं भी घाट और रिवर फ्रंट बनाए जा रहे हैं।
राम की पैड़ी से हम अंतिम गंतव्य गुप्तार घाट की ओर चले। गुप्तार घाट वह घाट है जहॉं श्री राम ने जल समाधि ली थी। ये अयोध्या से 12 किलोमीटर दूर फैजाबाद ( अब अयोध्या) में स्थित है। नदी के सहारे सहारे बंधे की सड़क से हम जा रहे थे। रास्ते में रिवर फ्रंट का काम जोर शोर से चल रहा था। जब यह 12 किलोमीटर लंबा रिवर फ्रंट बनकर तैयार हो जायेगा तब अयोध्या की छटा अद्भुत होगी।
गुप्तार घाट पहुंच कर सबसे पहले हमने नौका विहार किया।
यहॉं सरयू में भरपूर जल था, और यहॉं नौका विहार में बहुत आनंद आया।
नौका विहार के बाद तट पर ही बने अत्यंत प्राचीन राम जानकी मंदिर में दर्शन किये। वहीं बैठकर सबने भजन गाये। परिक्रमा की व प्रणाम करके बाहर आ गये। भूख भी लग रही थी, अतः वहीं स्थित दुकान पर चाय पी चोखा बाटी खाई, और पुनः अयोध्या में अपने होम स्टे पर वापस आ गये।
फ्रैश होकर, वस्त्र बदलकर बस में सवार हुए और रामलला के जयकारे के साथ सायं 6.30 बजे वापसी यात्रा प्रारंभ की।
रात भर बस में भजन गाते रहे, सीतापुर में रुक कर खाना खाया, बरेली से पहले फतेहगंज पूर्वी में पुनः चाय पीने के लिए रुके। फिर चल पड़े आपस में खूब बतियाते रहे ताकि सभी जगे रहें। हमारी पूरी यात्रा रात्रिकालीन ही थी। मुरादाबाद से रात भर सफर करके अगले दिन भर घूमना रहा और सायंकाल में फिर यात्रा प्रारंभ हो गई और रात्रि 12 बजे अयोध्या पहुंचे। मात्र 4-5 घंटे की नींद के बाद फिर दिन भर अयोध्या घूमे और सायं 6.30 बजे वापसी यात्रा शुरू हो गई थी। अतः जागते रहना जरूरी था। ड्राइवर साहब भी खूब बतियाते रहे। प्रातः साढ़े तीन बजे हम मुरादाबाद पहुंच गये और पौने चार बजे वापस घर आ गये।
इस प्रकार रामलला ने संपूर्ण यात्रा सकुशल संपन्न करा दी।
भगवान ने हमें पुनः बता दिया कि भगवान अपने भक्तों की इच्छा अवश्य पूरी करते हैं और उनका हर पल हर क्षण ध्यान रखते हैं।
जय सियाराम।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।