श्रीमान – श्रीमती
अब तक किये सारे गुनाहों का हिसाब लगवा रही हैं।
श्रीमतीजी झाड़ू उठाये श्रीमानजी के पीछे आ रही हैं।।
दफ्तर में अपने श्रीमानजी हरदम रौब – अकड़ दिखाते,
कभी बाबू, कभी जनता के चाय समोसे मुफ्त में खाते,
घर में श्रीमतीजी सारा लंच-डिनर इनसे बनवा रही हैं।
श्रीमतीजी ….!!!
रिश्वतखोरी ने श्रीमान को खूब आरामतलब है बनाया,
श्रीमती ने रिश्वतवाला खून मेहनत कराके निकलवाया।
छुट्टी के दिन बेडरूम आँगन साहब से साफ करवा रही हैं।
श्रीमतीजी ….!!!
दफ्तर का चपरासी खड़ा कोने में धीमे – धीमे मुस्काये,
श्रीमान को उसकी कुटिल मुस्कान एक आँख न सुहाये।
जले पर नमक श्रीमतीजी साहब से कपड़े धुलवा रही हैं।
श्रीमतीजी ….!!!
रचनाकार – कंचन खन्ना, मुरादाबाद,
(उ०प्र०, भारत) ।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार) ।
दिनांक – ११/०५/२०१८.