शुद्ध
कारण संबंध है,
जिसमें घुले मिले
शब्द —-
जीत लेना चाहते,
हैं ,दुनिया—-
परन्तु,कारण ही
समाप्त हो जाय,
तब संबंध —–
पुकारते है
प्रश्न करते हैं
विचलित हो जाते हैं
ठहराव,क्षणिक
होता हैं,
शीघ्र ही प्रवाह
आता हैं
जो वाह्य दुनिया
को आन्तरिक दुनिया
की तरफ मोड़
देता है संबंध,
हार और जीत
सब बह
जाता है—-
शेष रह जाता है
निर्मल शुद्ध
जल|