बिन काया के हो गये ‘नानक’ आखिरकार
दर-बदर की ठोकरें जिन्को दिखातीं राह हैं
तेरे भीतर ही छिपा, खोया हुआ सकून
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
है माँ
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
अच्छाई बाहर नहीं अन्दर ढूंढो, सुन्दरता कपड़ों में नहीं व्यवह
चलना, लड़खड़ाना, गिरना, सम्हलना सब सफर के आयाम है।
" ठिठक गए पल "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
जीवन की सुरुआत और जीवन का अंत
पढ़ते है एहसासों को लफ्जो की जुबानी...