शीशे में सच्चाई है।
शीशे में सच्चाई दिख जाए तो दर्पन का क्या करें।
जिसपर न भरोसा हो तो उसके भजन का क्या करें।
अपना मन पराया हो जाए तो तन का क्या करें।
खुद ही खुद का खुदा हो जाए तो तर्पन का क्या करें।
खुद मे ही जो जल भुन जाए तो हवन क्या का करें।
तुम्हारी खुशबू दूर से ही आ जाए तो पवन क्या का करें।
जिसके लिए ही जीता था उसे हार जाए तो जीवन का क्या करें।
………..✍विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र