शीर्षक: पापा की यादो की बुझी सी चिंगारी
शीर्षक:पापा की यादो की बुझी सी चिंगारी
न जाने कहाँ चले गए आप अदृश्य हो गए
कहाँ खो गए पुराने खंडहर सी यादे रह गए
घर की आँगन की तो मानो शान थे आप
अचानक ही गमी आँगन को दे गए
नीम के नीचे खाट आपकी राह देख रही हैं
न जाने कहाँ चले गए आप अदृश्य हो गए
घर की रौनक आपसे थी अब खत्म हो गई
यादो में आपकी अब घड़िया बीतने लग गई
कहाँ खो गये आप पता भी नही लगा पाई
यादो की गहराई में ही डूबती चली मैं गई
न जाने कहाँ चले गए आप अदृश्य हो गए
आँगन में वो मिट्टी का चूल्हा आज भी पुकारता हैं
उसके ओटे में आज भी यादो का कारवां हैं
घर जाती हूं तो यादो की लहर चलती हैं
दिन तो बीत रहे है पर गम वही हैं
न जाने कहाँ चले गए आप अदृश्य हो गए
आपकी चहक से आँगन की शोभा थी
वही आज शांत सा वातावरण दिखता हैं
कुछ पल सन्नाटा सा देख मन दुखता हैं
लगता हैं लूट गई खुशियां मेरे आँगन की
न जाने कहाँ चले गए आप अदृश्य हो गए
घर मे आपकी आवाज आज भी मानो आती हैं
कहती हैं बिटिया घर आई तो बहार आई हैं
पर बिटिया आप बिना उदास होती हैं
यादो ने आपके साथ बिताए पल याद करती हैं
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद