शीर्षक: पापा का विलय शून्य में
शीर्षक: पापा का विलय शून्य में
पापा का विलय शून्य में…
शून्य से शुरू व शून्य पर ही अंत
बस यही तो है जीनव की डगर
इसी राह पर चल हम करते हैं सफर
शून्य में ही जाने को मिलता हैं जीवन
तभी मैं समझ पाई जीवन चक्र को
पापा का विलय शून्य में…
उस परम शक्ति का नाम ही शून्य हैं
वही परमात्मा रूप में भी हैं
एकमेव शक्ति वही से जीवन बहता हैं
वही विलय होता पुनः आगमन को
नव जीवन मे फिर से संघर्ष को
पापा का विलय शून्य में…
उसी का अंश उसी में विलय बस
यही कहानी हैं परम् पिता से मिलन की
उस परम विराट की न्यारी हैं महिमा
मरणासन अवस्था मे भी याद उसी की
जाना वही जहां से शुरू हुआ था जीवन
पापा का विलय शून्य में…
चौरासी लाख योनियों में भ्रमण
जीव का ये चक्र चलता है जीवन तो
मात्र निमित्त हैं बस जाना आना है
काल के दंश को सहना होता हैं
मुक्ति के लिए चाह रखते हुए चलना है
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद