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24 Jan 2024 · 1 min read

मेरे हिस्से की धूप

सर्द-सर्द रातें हुई,
सर्द-सर्द हुए दिन।
मिहिका भरमा रही,
अब तो हर एक छिन।

दिनकर भी ओझल हुए,
दिखते अपराह्न बाद।
शीत पवन करती फिरे,
सबसे वाद-प्रतिवाद।

शीतलता कंपा रही,
नहीं अछूता भूप।
जाने कहाँ समा गई,
मेरे हिस्से की धूप।

Language: Hindi
80 Views
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