Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Sep 2023 · 5 min read

माँ आज भी जिंदा हैं

अद्भुत अनावरण परिपूर्णता गुरुता से परिपूर्ण दोषों को क्षमा करने वाली ही जो प्रकृत हैं वही तो माँ हैं, अपने संतान से इच्छापूर्ति ना रखने वाली धरोहरणी जननी हैं, सदा अपने पुत्र पुत्रियों से स्नेह प्रेम अपने संपूर्ण सुखों आनंदो ऐश्वर्य का परित्गाय करके उसकी इच्छा पूर्ति सुरक्षा करने वाली देवी ही तो माँ हैं, वसुंधरा जैसी सहन शक्ति, पीड़ा सहने वाली देवी पीड़ा उपरांत भी सदैव प्रचुर मात्रा में अपने प्रचुर प्रेम स्नेह सदैव निछावर करती रहती हैं, वह तो माँ ही हैं।

वह दिन मुझे भली प्रकार याद हैं, मुझे सुबह अत्यधिक ज्वर से पीड़ित होने पर भी मैं सुबह ५:३० बजे जग कर भोजन पका माताजी को चिकित्सालय में देकर १०:०० बजे सुबह में अपने काम पर चला गया, बारिश मौसम में ४००० स्क्वायर फीट छत भराया, ज्वर चरम सीमा पर था, मैं दवा लेकर कमरा पर सो गया, पिताजी भाई अस्पताल से माता जी को डिस्चार्ज करा कर रूम पर लाए, माताजी मेरी तबीयत देखकर जो पूर्ण रूप से व्याधि से ग्रसित थी, तो भी वह भगौना में पानी भरकर मेरे माथे पर पट्टी करने लगी, यह होती हैं माँ, जब पुत्र इतना पीड़ा में हो तो उसे अपनी व्याधि स्वास्थ्य की चिंता छोड़ पुत्र की सेवा करने या उसे स्वस्थ्य करने में लग जाती हैं, अपना सब कुछ लगा देती हैं, नजर उतारने लगती हैं उसके बस में जीतना होता हैं सब कुछ लगा देती हैं।

तेरी ज्योति रश्मि, कहाँ जा छिपी हैं
मुझे याद आती, तेरी हर घड़ी हैं
कहूँ मैं किससे, अपने उर की पीड़ा
कुदरत करिश्मा ए, कैसा हैं क्रीड़ा

आँचल ओढ़े उनके गोद में स्वर्ग सिंहासन से भी ऊँचा निष्ठुरता, द्वेष, पाखंड से दूर शांति का वह स्थान जहाँ मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च से उत्कृष्ट स्थान हैं माँ की गोद में सर रखकर आँचल मुख पर ओढ़े हुए मानों दुखों का परित्याग हो गया हो, स्वर्ग से भी सुंदर आलौकिक, ऐश्वर्य की प्राप्ति अनुभूत होती हैं, स्वर्ग सुख आनंद के परिकल्पना लोक से बढ़कर आलौकिक अनुभूति अप्रतिम आनंद स्वरूप प्राप्त होता हैं।

अंबर जैसा आँचल हैं, दुख का छटता बादल हैं
स्वर्ग सुख अनुभूति लिए, नजरों से बचाता काजल हैं
अशांति हरण यह गोद तेरी, तू तो शक्ति सरोजा हो
निसि दिन क्रीडा त्याग समर्पण, तुम्हीं तो मेरी पूजा हो

जब प्रकृत अपना संपूर्ण सार अपने संतति पर निछावर करती हैं, तो वहीं पुत्र समर्पण त्याग बलिदान पूजा को एक सामाजिक प्रथा मई आवरण बता कहता हैं, मुझे पढाना, पालना यह तो आपका कर्तव्य हैं, अब मैं जहाँ हूँ जैसे हूँ, आपसे कुछ लेना देना नहीं हैं, यह पीड़ा उस प्रकृत देवी जो स्वयं तप कर संतति जिसे एक पुष्प पौधा एक सुंदर सुव्यवस्थित सुगंधित पौधा पेड़ रूप में विकसित कर दिया, वह घमंड में चूर उसका अनादर कर रहा हैं, जो प्रकृति ही उसे आज अरुणोदय का रश्मि सूर्य बनाकर संसार जगत को एक अनमोल रतन बना दिया हैं, क्या उस भोली भाली प्रकृति (माँ) की तपोंशक्ति तपस्या साधना का अनादर कर क्या संतान सुखी रह सकता हैं, कभी भी नहीं, जो निष्ठुर व्यवहार तुम अपने आदरणीय जननी से करते हो, वहीं निष्ठुर दुःख तुम्हारे पास पुनः लौट कर तुम्हारे संतति द्वारा प्राप्त होता हैब।

ले चलता हूँ आप सभी पाठकों को एक संचारित सात्विक घटना पर जहाँ से मेरी स्मृति मुझे याद आती हैं, २५ वर्षों में अपने माँ से कभी अलग ना होने वाला मैं अंत समय में १६ दिवस पूर्व अलग हुए, तो फिर कभी न मिल सके, माता के सार यज्ञ कुंड हवन से जो शीतल माधुर्य, संचार अनुनय विनय व्यवहार रूपी धरोहर संचालित शक्ति ज्वाला जो मुझे प्राप्त हुई, उसके प्रेरणा स्रोत व्यवहार मेरे हृदय में उन्हें सदैव श्रेष्ठ सिंहासन पर स्थापित करता हैं।

अंतिम समय में कुछ पल को क्या लिखूं, वह पल लिखकर अपने स्वार्थ को प्रोत्साहन देना हैं, क्या यह आप बीती लिखना मेरे लिए मात्र साधना होगी या मेरा माता के प्रति उजागर स्वार्थ साधना, मुझे पूर्ण विश्वास हैं कि माता सदैव मुझे वैसे ही प्रेम किया हैं, जैसा एक माता सदैव अपने पुत्र से करती हैं, सबसे छोटा होने के नाते सदैव माँ के आंचल ओढ़े २५ वर्ष कैसे बीते कुछ मालूम ही नहीं पड़ा।

ग्राम से सूरत गुजरात शाम ६:०० बजे आए अगले दिन ईद से चिकित्सालय बंद होने के कारण माता जी चिकित्सालय से कमरा पर आ गई, गुरुवार की सुबह बीता शुक्रवार रात्रि तबीयत इतना खराब हुआ कि हम लोग माताजी को पुनः सिविल चिकित्सालय ले गए, रात्रि ३:०० बजे अवकाश दे दिया, सुबह काम पर गया रात्रि ११:०० बजे पुनः तबीयत बिगड़ी तो चिकित्सालय में भर्ती कराया, चिकित्सक ने भोर में ४:०० बजे छुट्टी दे दिया, फिर मैं काम पर गया, रात्रि १०:०० बजे शनिवार श्री जी अस्पताल में ले गए वहाँ के कंपाउंडर ने पानी की बोतल चढ़ाना शुरु किया, शरीर पूरा फूल गया, चेहरा पहचान में भी नहीं आ रहा था, मानों कब वह इस दुनिया से चली जायेंगी कहाँ नहीं जा सकता था, किसी तरह शाम ५:०० बजे डॉक्टर आए और बोले अपोहन करना पड़ेगा, हम लोग वहाँ से डिस्चार्ज करा कर पुनः सिविल अस्पताल इमरजेंसी में लाएं, तो डॉक्टर पंजाबी सर के अंडर में उनका तुरंत इलाज प्रारंभ हुआ, इमरजेंसी से मैडम ने तुरंत एडमिट कार्ड प्रोसेसिंग शुरू किया, ब्लड टेस्ट, अल्ट्रासाउंड एक्स-रे करवा दिया, सुबह अपोहन प्रक्रिया प्रारंभ हुआ, दोपहर १२:०० बजे के बाद से तो दो घंटा अपोहन होने के बाद कुछ आराम मिला, तीन दिन रात से जागने के बाद मैं उस दिन रात्रि को कुछ देर सोया लेकिन रात्रि तबीयत बराबर नहीं हुई तो अगले दिन सुबह फर्स्ट शिफ्ट में पुनः अपोहन कर, आक्सीजन लगा कर, एक सप्ताह बाद अस्पताल से छुट्टी दिया, अपोहन क्रिया कलाप सप्ताह में दो दिन होता, यह कार्यक्रम आठ माह चला, जिसने दो बार तो इतना तबियत खराब हुआ की मानों कब प्राण पखेरू उड़ जायेंगे कहाँ नहीं जा सकता हैं, चिकित्सालय के सभी स्त्री एवम् पुरुष वैद्यों से एक स्नेह प्रेम का रिश्ता सा जुड़ गया, जिसमें पिता जी भाई जी ने बहुत सेवा किया, अंतिम ५४ दिन लगातार अस्पताल में एडमिट रहीं और अंतिम सांस भी सिविल अस्पताल में लिया।

रोग-रोगी का मैं ही पटल हूँ
हसते-रोते खड़ा मैं अटल हूँ
चैतन्य कलेवर का रिश्ता सरल हूँ
कलरव के जीवन का कल हूँ
मैं ही तुम्हारा अस्पताल हूँ

उनका व्यवहार आचरण मेरे साथ खड़ा रहा हैं, जिसे मैं महसूस करता हूँ, इसलिए मैं गर्व से कहता हूँ, कि माँ आज भी जिंदा हैं, मेरे अंदर उनका व्यवहार धरोहर मिला हुआ हैं, उनके सखियों के द्वारा मिला स्नेह प्रेम मुझे सदैव माता का अनुसरण करता रहता हैं, उनके सखियों सहेलियों का मिला स्नेह मुझे उनकी छवि का अनुभव कराता हैं, मानों वह स्वयं आकर मुझे आश्वासन दे रहीं हो, इस भाव प्रतिमान में मेरी माँ का आज भी स्नेह प्रेम अनुमोद प्रमोद मिलता हैं, जो आज भी मेरे सहृदय धरा में साक्षात जिंदा हैं, ऐसा मुझे लगता हैं जो सदैव मेरी रक्षा करती हैं।

त्रिलोक में माँ जैसी नहीं देवी
माँ में समाए कोटि रवि
छोडूं नहीं माँ तेरी भक्ति
प्रथम गुरु माँ ही होती

Language: Hindi
1 Like · 111 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Er.Navaneet R Shandily
View all
You may also like:
मैने वक्त को कहा
मैने वक्त को कहा
हिमांशु Kulshrestha
आज तुम्हारे होंठों का स्वाद फिर याद आया ज़िंदगी को थोड़ा रोक क
आज तुम्हारे होंठों का स्वाद फिर याद आया ज़िंदगी को थोड़ा रोक क
पूर्वार्थ
और भी हैं !!
और भी हैं !!
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
दिल में दबे कुछ एहसास है....
दिल में दबे कुछ एहसास है....
Harminder Kaur
करता नहीं यह शौक तो,बर्बाद मैं नहीं होता
करता नहीं यह शौक तो,बर्बाद मैं नहीं होता
gurudeenverma198
बड़े लोग क्रेडिट देते है
बड़े लोग क्रेडिट देते है
Amit Pandey
कहाँ जाऊँ....?
कहाँ जाऊँ....?
Kanchan Khanna
सद्विचार
सद्विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
तलाशता हूँ -
तलाशता हूँ - "प्रणय यात्रा" के निशाँ  
Atul "Krishn"
आख़िरी इश्क़, प्यालों से करने दे साकी-
आख़िरी इश्क़, प्यालों से करने दे साकी-
Shreedhar
#लघुकथा
#लघुकथा
*Author प्रणय प्रभात*
मत जला जिंदगी मजबूर हो जाऊंगा मैं ,
मत जला जिंदगी मजबूर हो जाऊंगा मैं ,
कवि दीपक बवेजा
मुक्तक
मुक्तक
प्रीतम श्रावस्तवी
जय श्री राम
जय श्री राम
Er.Navaneet R Shandily
3072.*पूर्णिका*
3072.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
हद्द - ए - आसमाँ की न पूछा करों,
हद्द - ए - आसमाँ की न पूछा करों,
manjula chauhan
हम भी अगर बच्चे होते
हम भी अगर बच्चे होते
नूरफातिमा खातून नूरी
.........???
.........???
शेखर सिंह
'स्वागत प्रिये..!'
'स्वागत प्रिये..!'
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
"प्रार्थना"
Dr. Kishan tandon kranti
था मैं तेरी जुल्फों को संवारने की ख्वाबों में
था मैं तेरी जुल्फों को संवारने की ख्वाबों में
Writer_ermkumar
स्त्री
स्त्री
Shweta Soni
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
भक्ति की राह
भक्ति की राह
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
पुरानी यादें ताज़ा कर रही है।
पुरानी यादें ताज़ा कर रही है।
Manoj Mahato
कैसे लिखूं
कैसे लिखूं
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
बट विपट पीपल की छांव ??
बट विपट पीपल की छांव ??
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
*जाति मुक्ति रचना प्रतियोगिता 28 जनवरी 2007*
*जाति मुक्ति रचना प्रतियोगिता 28 जनवरी 2007*
Ravi Prakash
हर दिन एक नई शुरुआत हैं।
हर दिन एक नई शुरुआत हैं।
Sangeeta Beniwal
मैं छोटी नन्हीं सी गुड़िया ।
मैं छोटी नन्हीं सी गुड़िया ।
लक्ष्मी सिंह
Loading...