शीर्षक -नेकी की राह पर तू चल!
शीर्षक -नेकी की राह पर तू चल!
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नेकी के पथ सदा ही, तू मानुष चलना।
जीवन की बाधाओं से, तुम कभी ना डरना।।
प्रभु तेरे हृदय में, तू क्यों उसे बाहर ढूंँढता।
सत्य के पथ चलना, प्रभु तेरे साथ चलता।।
कण-कण में है वास उसका, फिर!
तू उसे कहाँ तलाशता।
कहीं मिलता नहीं चैन मुझको तो,
प्रभु के चरणों में ही सुकून मिलता।।
कभी वह पत्तों में कभी फूलों में,
हर जगह पर है उसका बसेरा।
मिट जाएंँगी जीवन से अंँधेरी रातें,
जब होगा अरुणिम स्वर्णिम उजेरा
जीवन की चुनौतियों का मुकाबला करो
अपने कदम सत्य के पथ में बढ़ाना।
अडिग रह हिमालय सा जीवन में,
नेकी की राह में सदा कदम बढ़ाना!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर