#शीर्षक:-तो क्या ही बात हो?
#दिनांक:-5/5/2024
#शीर्षक:-तो क्या ही बात हो?
ढ़ेर ख्वाहिशों का हों,
और सपना सच हो जाये !
तो क्या ही बात हो ?
उजड़े उखड़े दर्द हो ,
बेहतर कोई मलहम लगाया जाये,
तो क्या ही बात हो ?
अमीरों के महल में भौतिकता चमकती,
गरीबों के जर्जर घर का हाल बदल जाये,
तो क्या ही बात हो ?
अनैतिकता का युग चल रहा है ,
दरिन्दगी सोच की हत्या कर दी जाये ,
तो क्या ही बात हो ?
महिलाओं का आरक्षण सुनिश्चित हो गया है ,
अब तो बलात्कार से सुरक्षित हो जाये,
तो क्या ही बात हो ?
महफिल अपनों की हो ,
प्यार के जाम पे जाम पिलाया जाय,
तो क्या ही बात हो?
रचना मौलिक, स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई