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19 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल सगीर

अहसास नहीं होता उसे अब कमर का दर्द।
महसूस जिसने कर लिया है सारे घर का दर्द।

बेटी चिमट गई मेरे सीने से आके जब।
खुशियों में फिर बदल गया मेरे सफर का दर्द।

जलते हैं मुझसे आज जो मंजिल पे देख कर।
किसको पता है
कैसा है ऐब ओ हुनर का दर्द।

जिसकी खुशी में अपनी खुशी,मानते रहे।
उसने ही मुझको दे दिया है उम्र भर का दर्द।

सबके गमों में भूल गया है जो अपने गम।
कोई नहीं समझ रहा उस चारागर का दर्द।

उसकी जुदाई मान लिया रब का फैसला।
बढ़ जाए न सगीर मेरे हमसफर का दर्द।

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