शीर्षक-“तुम बिन “(4)
तुम एक पल आ जाओ,
एक पल आ जाओ,
झलक दिखला जाओ,
झलक दिखला जाओ||
तरस गई हैं अंखियाँ,
तुम बिन लागे न जिया,
अभी भी है मुझे इंतज़ार !
प्यास बुझा जाओ,
तुम एक पल आ जाओ,
तुम एक पल आ जाओ,
एक पल आ जाओ,
झलक दिखला जाओ,
झलक दिखला जाओ||
काँपती हैं यूं धमनियाँ,
तड़पते बदन की चिंगारियाँ,
साये का भी करूँ मैं ऐतबार !
साथ निभा जाओ,
तुम एक पल आ जाओ,
तुम एक पल आ जाओ,
एक पल आ जाओ,
झलक दिखला जाओ,
झलक दिखला जाओ||
राह निहारे मेरी बेसब्रियाँ,
लुका छिपी का खेल भी खेल लिया,
तेरे एक ईशारे को नैनन रहे निहार !
दरस दिखा जाओ,
तुम एक पल आ जाओ,
तुम एक पल आ जाओ,
एक पल आ जाओ,
झलक दिखला जाओ,
झलक दिखला जाओ||
परेशान करती हैं ये बैचेनियाँ,
बिना कुछ कहे सुने ही बन गई दूरियाँ,
तेरी एक झलक देखने तरस रहा परिवार !
झलक दिखला जाओ,
तुम एक पल आ जाओ,
तुम एक पल आ जाओ,
एक पल आ जाओ,
झलक दिखला जाओ,
झलक दिखला जाओ||
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल