शीर्षक-“छोटे बच्चों में यूं करें हिंदी भाषा का विकास”
“मूर्त और अमूर्त विचारों की अभिव्यक्ति का जरिया है भाषा”
11वीं कक्षा के लिए मनोविज्ञान की एनसीईआरटी की किताब के अनुसार, “भाषा के उपयोग की योग्यता मनुष्य को दूसरे प्राणियों से अलग करती है। भाषा के जरिये हम स्वयं से और दूसरे लोगों के साथ बातचीत करते हैं। भाषा प्रतीकों की एक व्यवस्था है, जिसका उपयोग हम एक-दूसरे के साथ संचार के समय करते हैं। रोज़मर्रा के जीवन में दिखाई देने वाली चीज़ों के अलावा अमूर्त विचारों जैसे सौंदर्य एवं न्याय को व्यक्त करने में भी भाषा हमारी मदद करती है।”
बच्चों के विकास में अभिभावक की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। इस भूमिका के निर्वाह में स्कूलों के साथ उनका अच्छा तालमेल और समन्वय वाला रिश्ता होना जरूरी है। ऐसा करने के लिए ऐसे फोरम की जरूरत है जहाँ शिक्षक, अभिभावक और बच्चे एक साथ मौजूद हों । विद्यालय एक ऐसी जगह है जहाँ हर समुदाय से बच्चे आते हैं और औपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं, जिससे वो अपने समुदाय की संस्कृति और काम को सीखते हुए जोड़ते हैं। इस यात्रा में बच्चे अपनी विभिन्न क्षेत्रों की दक्षता में सतत सुधार करते हुए सीखते हैं। इन सबमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है! मातृभाषा हिंदी ।
हिन्दी हमारी मातृभाषा है । जब बच्चा पैदा होता है तो वह जन्म से ही भाषा सीख कर नहीं आता। भाषा का पहला ज्ञान उसे आस-पास सुनाई देने वाली आवाजों से प्राप्त होता है और भारत में अधिकतर घरों में बोलचाल की भाषा हिंदी ही है , उस घर में छोटे बच्चे को सभी हिन्दी में बात करके समझाते और सिखाते हैं , तो ऐसे में भारतीय बच्चे हिंदी भाषा को आसानी से समझने की कोशिश करते हैं ।
भाषा कौशल विकास का प्रारंभ सबसे पहले श्रवण कौशल से ही होता है । जन्म लेने के बाद बच्चा सबसे पहले सुनने की स्थिति में ही होता है । आयु के साथ वह सुने गए शब्दों का अर्थ भी समझने लगता है । श्रवण केवल ध्वनियों का सुनना मात्र ही नही होता अपितु भाषा को समझने का एक सरल माध्यम है । इसमे किसी भी कथन को ध्यानपूर्वक सूनने, सुनी बातों पर चिंतन-मनन करने तथा चिंतन के बाद उस पर पूर्ण स्थिरता के साथ तदानुसार वैसा व्यवहार करने और क्रमबद्ध प्रक्रियाऍं सम्मिलित हैं । ये सभी बच्चों के सही मानसिक स्तर के विकास, सही शिक्षण एवं सतत अभ्यास के साथ एक व्यक्ति में आते हैं ।
कहते हैं इस जीवन में माता-पिता बच्चों की परवरिश के प्रथम चरण में मुख्य शिक्षक होते हैं। बच्चों में भाषण और भाषा के लिए मस्तिष्क का विकास स्कूल शुरू होने से पहले होता है। वास्तव में अनुसंधान से पता चलता है कि भाषण और भाषा का विकास बच्चों में 2 और ढाई वर्ष की उम्र तक होने लगता है। माता-पिता और उनकी देखभाल करने वाले बच्चों के भाषण और भाषा के विकास पर बहुत बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं।
नन्हें-नन्हें बच्चे फूलों की तरह बहुत नाजुक होते हैं, जैसे हम छोटे-छोटे पौधों को आवश्यक खाद डालते हैं, सिंचाई करते हैं और उनकी नियमित रूप से देखभाल करते हैं, ठीक उसी प्रकार से इन नवनिहालों को भी बचपन से जिस प्रकार सींचेंगे, वे उसी प्रकार फलेंगे और फूलेंगे ।
अगर आप भी किसी बच्चे के अभिभावक हैं तो आपको एक नियमित अंतराल के पश्चात स्कूल जाना चाहिए! ताकि बच्चे के बारे में आपको शिक्षक से वास्तविक फीडबैक मिल सकें। बच्चों को भी एक संदेश पहुंचे कि मम्मी-पापा उनकी परवाह करते हैं। इसके लिए स्कूल में आयोजित होने वाली विद्यालय प्रबंधन समिति (एसएमसी) या अभिभावक-शिक्षक बैठक में अपनी सक्रिय भागीदारी जरूर सुनिश्चित करें।
एक शोध के अनुसार, जितना अधिक शब्दों का प्रयोग आप अपने बच्चों से बात करते समय करते हैं, उतने ही ज्यादा अक्षर वो सीखते हैं।
कुछ स्कूलों में हुए सर्वे के अनुसार, जिन स्कूल में शिक्षक कक्षा में उच्च गुणवत्ता वार्तालाप का उपयोग करते हैं जिसमें असामान्य शब्दों का उपयोग होता है तो बच्चे उतने ही ज्यादा प्रश्न पूछना पसंद करते हैं। जब अभिभावक बच्चों की प्रतिक्रियाओं पर टिप्पणी करते हैं तो इससे बच्चों में बेहतर भाषा का विकास होता है।
एक बच्चे के रूप में हमारे संवाद की शुरूआत ‘घर की भाषा’ में होती है। घर की यही भाषा हमारे सपनों की भाषा भी होती है! विद्यालय में जाने और अन्य लोगों के साथ संपर्क में आने के बाद एक बच्चे के शब्द भण्डार में वृद्धि होती है। वह किसी बात को अभिव्यक्त करने के अनगिनत तरीकों से रूबरू होता है।
इसके साथ ही बच्चा नई भाषा भी सीखता है और घर की भाषा के नियमों का इस्तेमाल नई भाषा को सीखने के लिए स्वाभाविक ढंग से करना सीखता है। मनोविज्ञान में भाषा और संचार का अध्ययन भी किया जाता है।
आईए पाठकों हम पहले हिंदी भाषा के महत्व को जान लेते हैं ताकि आप यह अच्छी तरह से समझ सकें कि छोटे बच्चों को भी हिंदी भाषा का ज्ञान होना कितना आवश्यक है ।
हिंदी भाषा का महत्व
हिंदी शब्द का संबंध संस्कृत के सिंधु शब्द से माना जाता है। सिंधु सिंध नदी को कहा जाता था। यही सिंधु शब्द ईरानी में जाकर हिन्दू , हिंदी और फिर हिन्द हो गया और इस तरह इस भाषा को अपना नाम मिला।
हिंदी भाषा ना केवल भारत में बोली जाती है बल्कि मॉरीशस, फिजी, गयाना, सूरीनाम, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, यमन, युगांडा, सिंगापुर, नेपाल, न्यूजीलैंड और जर्मनी जैसे देशों के एक बड़े वर्ग में भी प्रचलित है।
आइये, अब आपको हिंदी भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएं बताती हूँ –
हिंदी का उद्भव देवभाषा संस्कृत से हुआ है जो इतनी समृद्ध और आधुनिक है कि उसे कंप्यूटर और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में प्रयोग करने के लिए सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है।
हिंदी की वर्णमाला दुनिया की सबसे व्यवस्थित वर्णमाला है जिसमें स्वर और व्यंजनों को अलग-अलग व्यवस्थित किया गया है।
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है जो विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है।
हिंदी वर्णमाला में हर ध्वनि के लिए लिपि चिन्ह है यानी हम जो भी बोले, उसे आसानी से लिखा भी जा सकता है।
हिंदी भाषा का शब्दकोष बहुत विशाल है जिसमें हर कार्य के लिए बहुत से शब्द मौजूद हैं। इस शब्दकोष में शब्दों की संख्या 2.5 लाख से भी ज्यादा है और ये संख्या तेजी से लगातार बढ़ रही है।
हिंदी भाषा इतनी लचीली है कि इसमें दूसरी भाषाओं के शब्द भी आसानी से समा जाते हैं।
हिंदी में साइलेंट लेटर्स नहीं होते हैं इसलिए इसके लेखन और उच्चारण में शुद्धता रहती है।
इस भाषा में निर्जीव वस्तुओं के लिए भी लिंग का निर्धारण होता है।
हिंदी ऐसी व्यावहारिक भाषा है जिसमें हर संबंध-रिश्ते के लिए अलग-अलग शब्द दिए गए हैं।
आज दुनिया में दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा के रुप में हिंदी ने अपनी जगह बनायी है।
हिंदी भाषा की समृद्धता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस भाषा की पांच उप-भाषाएँ हैं और कम से कम सोलह बोलियां प्रचलन में हैं।
सोशल मीडिया के इस दौर में इंटरनेट पर हिंदी का प्रयोग बहुत तेजी से बढ़ रहा है और फेसबुक, ट्विटर पर भी हिंदी का प्रयोग बहुत बढ़ा है।
अब तो आप हिंदी भाषा के महत्व को जान ही गए हैं तो चलिए छोटे बच्चों में इस भाषा का विकास कैसे आसानी से संभव हो सकता है!
इसके बारे में मैं आपको अवगत कराने का प्रयास करती हूँ । प्रारंभिक भाषण और भाषा कौशल बच्चे के विकास और स्कूल और पूर्ण जीवन में दीर्घकालिक सफलता के साथ जोड़ा जाता है। माताऍं निम्नलिखित प्रमुख बातों का ध्यान रखकर भाषा और विकसित कर सकते हैं -:
1.बच्चों के साथ। हिंदी भाषा में छोटे-छोटे वार्तालाप करें । ऐसा करने से वो आपके साथ व्यस्त रहेंगे और ज्यादा से ज्यादा अक्षर जानेंगे।
2.वस्तुओं, गतिविधियों या घटनाओं का वर्णन देते हुए एक टिप्पणीकार का रोल अदा करें।
3.बातों और कहानियों को मिक्स करने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के शब्दों और व्याकरण का उपयोग करें। यह सुनिश्चित करें कि हिंदी भाषा में कहानियां आपके बच्चे की रूचि के अनुरूप हो और उन्हें पसंद हो । उन्हें बहुत डरावनी कहानियां ना सुनाएं।
4.वस्तुओं या कार्यों के नाम के साथ उन्हें बच्चों को बतायें, दिखाएँ और उनके बारे में समझाऍं।
5.गतिविधियों या वस्तुओं में उलझाने से बच्चों में भाषा का विकास जल्दी होता है, अत: यह प्रयास करें कि बच्चा संबंधित गतिविधि में व्यस्त रहे ।
6.बच्चों की भागीदारी बनाने के लिए इंटरैक्टिव और पिक्चर बुक्स का उपयोग करें।
7.आप भी पुस्तकों को बार-बार पढ़ें एवं बच्चों को उनका महत्व समझाते हुए उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करें । पुस्तकें कई बार पढ़ने से बच्चों में भाषा को याद रखने का दौर आता है। साथ ही बच्चे यदि स्कूल की किताबें पढ़ना चाहते हैं और किताबों को घर ले जाना चाहते हैं! उनकी इस रुचि को ध्यान में रखते हुए विद्यालय में पुस्तकालय का ज्यादा प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल करने की कोशिश करनी होगी। भाषा सीखने में पुस्तकालय के महत्व को वे सुलभ गति से समझ सकेंगे । पठन कौशल का विकास पढ़ने से होगा और बच्चे अगर निरंतर किताबें पढ़ते रहें तो उनका पठन कौशल स्वतः उन्नत होता चला जाता है। यह बात भाषा पर काम करने के दौरान पुस्तकालय का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले बच्चों के संदर्भ में काफी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। निःसंदेह इसमें बच्चे के व्यक्तिगत रुचि की भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका है ।
8.ऐसी वस्तुओं का परिचय अवश्य दें जिसमें बच्चों को बातचीत करना पसंद हो।
9.संगीत के माध्यम से बहुत कुछ सिखाया जा सकता है। संगीत की अनेंकों गतिविधियों से जोड़ने से बच्चे जल्दी सीखते हैं। जब बच्चे जीवंत गाने सुनते हैं जैसे “ओल्ड मैकडॉनल्ड हाद एक फार्म”, तो वे उनके आसपास की दुनिया और भाषा की लय के बारे में सीखते हैं।
10.शब्दों के साथ इशारों या सरल संकेतों का उपयोग करें जिससे वो भाषा के साथ-साथ संकेतों को भी समझें।
11.रोजमर्रा की चीजों की बात करते हुए परिचित स्थानों या वस्तुओं के बारे में बताएं। बच्चे जो देखते हैं उसे जल्दी सीखते हैं।
12.बच्चों के सामने कभी भी उनकी तरह बोलने का प्रयास ना करें । कभी- कभी बच्चे तुतला तुतलाकर बोलते हैं । ऐसा बोलने से उन्हें रोकें । ठीक से बोलने से वो आपकी नकल करेंगे और समझ सकेंगे।
13.आपका बच्चा क्या देख रहा है या कर रहा है इसके बारे में विस्तृत विवरण दें । उनके सामने उनकी दैनिक दिनचर्या पर टिप्पणी अवश्य करें जैसे हाथ धोने पर, खाने पर, डायपर बदलने पर, सोने पर, नहाने पर, चलने पर आदि ।
14.अगर बच्चे को किसी पुस्तक या वास्तु या एक विशेष तस्वीर में दिलचस्पी हो तो इसके बारे में उनसे बात करें। उसे अपने पास बुलाएँ, उसकी बातों को दोहराएं। उससे सवाल पूछें और उसके साथ बातचीत करें ! वही बातचीत एक टेप रिकॉर्डर पर रिकॉर्ड करने का प्रयास भी कर सकते हैं और इसे एक खेल बना सकते हैं ताकि बच्चा जल्दी सीख सके और भूले नहीं ।
15.आजकल सोशल-मीडि़या के काफी ऐसे साधन उपलब्ध हैं, जिनके जरिये भी घर पर और स्कूलों में ऑनलाईन भाषा का ज्ञान कराना काफी आसान हो गया है ।
इस सरल और उदार भाषा की ख़ासियत है कि इसे जैसा लिखा जाता है वैसा ही बोला जाता है इसलिए कोई भी व्यक्ति इस भाषा को आसानी से सीख सकता है। भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी का महत्व बढ़ाने के लिए 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रुप में मनाया भी जाता है।
हिंदी भाषा कितनी समृद्ध है, ये तो आप जान ही गए हैं और आज के दौर में हिंदी भाषा को धीरे-धीरे अपना वो मुकाम फिर से मिलने लगा है जो गुलामी के दौर में उससे छीन गया था।
ऐसे में आप भी अपनी राजभाषा से प्रेम करिये और उसके प्रसार और विस्तार में कोई कमी मत छोड़िये क्योंकि अपनी भाषा से प्रेम करना अपने देश से प्रेम करने जैसा ही है और पहले आप स्वयं में विकास करेंगे तो ही छोटे बच्चों को विकसित कर पाएंगे ।
भाषा एक अत्यंत सृजनशील प्रक्रिया है। उदाहरण के लिए, आप उस वाक्य को भी समझ जाते हैं, जिसको पहले कभी आपने न देखा न सुना था। इसके साथ ही आप ऐसे अनोखे वाक्य बोल या लिख सकते हैं, जिसको आपने पहले सुना ही नहीं था।
भाषा की इस सृजनात्मकता को अनंत उत्पादनशीलता कहा जाता है। यह व्यक्ति की उस योग्यता को व्यक्त करती है, जिससे वह सीमित नियमों एवं शब्दों की सहायता से असीमित अर्थवान वाक्यों का सृजन कर सकता है।
हिंदी के अनुवाद कार्य को सुगम बनाने के लिए इतने ज्यादा सॉफ्टवेयर आजकल उपलब्ध हैं, जिनके जरिये हिंदी का केवल अनुवाद ही नहीं, बल्कि जहां अंग्रेजी का वर्चस्व था, वहां भी हिंदी का वर्चस्व अनुभव किया जा सकता है। हिंदी की वेबसाइटों के उपभोक्ताओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
किसी भी देश की उन्नति यदि सही दिशा में हो, तो उस देश की मुख्य भाषा को तो उचित दर्जा देना ही चाहिए । मतलब यही कि देश के विकास के साथ अपनी भाषा का भी महत्व है। विकास यदि प्रौद्योगिकी क्षेत्र का हो, तो उसमें भाषा का प्रवेश होता है। विकास यदि बिजनेस के क्षेत्र का है, तो ग्लोबल ट्रेंड में भाषा प्रवेश कर जाती है। पूंजी-निवेश के अनुपात में भाषा के उपयोग का अनुपात बढ़ता है। इसलिए हिंदी भाषा का विकास भारत के अपने विकास पर निर्भर है। वैश्विक बाजार में अगर भारत की भूमिका बढ़ेगी, तो निश्चित रूप से हिंदी का दायरा भी बढ़ेगा। इस तरह हम अंग्रेजी के दबाव से मुक्त हो सकते हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि आजकल राजभाषा हिंदी अपनी सीमाओं से बाहर आ चुकी है। वह नई प्रौद्योगिकी, वैश्विक विपणन तंत्र और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की भाषा बन रही है। इस प्रक्रिया को तेज गति देना बेहद जरूरी है। राजभाषा से एक नई वैश्विक भाषा के रूप में हिंदी बदल रही है। यह विकास की भाषा भी बन रही है। इस प्रक्रिया को यदि हम उम्दा तरीके से रचनात्मक बनाएं, तो विश्वभाषा के रूप में हिंदी विश्व मंच पर खड़ी हो सकती है। मगर इसके लिए हमें सबसे पहले भाषायी संकीर्णताओं से मुक्त होना होगा, और देश की अन्य विकसित भाषाओं के विकास के लिए कार्य करना होगा।
वर्तमान सरकार को यह समझने की जरूरत है! हिन्दी भाषा सबको आपस में जोड़ने वाली भाषा है तथा इसका प्रयोग करना हमारा संवैधानिक एवं नैतिक दायित्व भी है । अगर आज हमने हिंदी को उपेक्षित करना शुरू किया तो कहीं एक दिन ऐसा ना हो कि इसका वजूद ही खत्म हो जाए। समाज में इस बदलाव की जरूरत सर्वप्रथम स्कूलों और शैक्षिक संस्थानों से होनी चाहिए। साथ ही देश की संसद को भी मात्र हिन्दी पखवाड़े में ही मातृभाषा का सम्मान नहीं बल्कि हर दिन इसे ही व्यावहारिक और कार्यालय में कार्यकारीणी भाषा बनाने हेतु बल देने की आवश्यकता है ।
जी हॉं पाठकों! भारत देश में उनमें उनके सर्वांगीण विकास हेतु हिंदी भाषा को विकसित करना अति-आवश्यक है! आज के छोटे बच्चे आने वाले कल का भविष्य लिख पाएंगे! जो भारत की उन्नति का द्योतक है ।
जी हां पाठकों, मेरा यह लेख अवश्य ही पढ़िएगा एवं अपने विचार व्यक्त किजिएगा । मुझे आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा ।
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आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल