शीर्षक -घर
शीर्षक – घर
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घर हम सभी का होता हैं।
जिंदगी और जीवन रहता हैं।
तेरे मेरे सपने वहां जवां होते हैं।
घर ही तो हमारी पहचान होता हैं।
इमारतों में घर फ्लैट बन चुकें हैं।
घर और घौसोलो के फर्क कहां हैं।
बस सोच हमारी अपनी रहती हैं।
पक्षी भी घर अपने बनाकर रहते हैं।
हम सभी घौंसले की ही सोच रखते हैं।
बस हमारी मंज़िल पर हम घर कहते हैं।
घर तो एक सुकून और सुरक्षा देता हैं।
हम घर ही तो जीवन में सच कहते हैं।
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नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र