शीर्षक: गरिमा
शीर्षक: गरिमा
मैं उन वीर शहीदों के
चरणों में शीश नवाती हूँ
जो देश-हित बलिदान हुए
मैं उनकी गाथा लिखती हूँ।
मैं उनकी गाथा गाती हूँ
मैं उनकी गाथा कैसे गाऊँ
दिल अंदर से रो उठता हैं
वो इतहास में नाम लिखा ग
मैं अदनी सी एक लेखिका
अपने शब्दो में लिखती हूं
उनकी गाथा को गाती हूँ
उनकी गाथा से शब्द भरे।
मैं एक कविता लिखती हूँ
कागज भी कम पड़ जाते है
ऐसी वीरों की गाथा हैं
अपनी मां को वो छोड़ चले
भारत माता के चरणों मे
मैं उन वीर शहीदों के
चरणों में शीश नवाती हूँ
वो अपने घर के सहारा थे
माता की आँख का तारा थे
देश के लिए जो शहीद हुए
वो बलिदानों की गाथा हैं
वो वीर शहीद हो जाता हैं।
जब लिपट तिरंगे आया हैं
मैं उन वीर शहीदों के
चरणों में शीश नवाती हूँ
हम बैठे होते जब घर में।
वो झेल रहे होते गोली
हम दीप उत्सव मना लेते
वो खेल रहे खूंन कि होली
हम चैन से सोते जब घर मे।
वो माँ का पहरा देते हैं
हँसते हँसते शहीद हो जाते है
इतिहास मे नाम लिखाते हैं
नाम अपना अमर कर जाते।
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद